prem ki anubhuti
प्रेम की अनुभूति
जब स्मृति में उभरती है
सदा सदा के लिए
तृप्त कर कर देती है
अंग प्रत्यंग को
हरा कर देती है
सदा के लिए
जिसकी तस्वीर
ऑंखों में रहती है
आठों पहर
हूक सी उठती है
तड़प बढ़ जाती है
जिसे पाने के लिए
ख्यालों में खोना पड़ता है
दिन-रात रोना पड़ता है
अकेले में
उसे पाने तक !!!
anubhuti prem ki
प्रेम की अनुभूति
साँसों में समाकर
ह्रदय में बसाकर
जीवन का अहसास
कराती है
जीवन एक पूर्णता का भास कराती है
जिसके पास होती है
दुनिया में किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ती है
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