प्रेम की अनुभूति

prem ki anubhuti 



प्रेम की अनुभूति
जब स्मृति में उभरती है
सदा सदा के लिए
तृप्त कर कर देती है
अंग प्रत्यंग को
हरा कर देती  है
सदा के लिए
जिसकी तस्वीर
ऑंखों में रहती है
आठों पहर
हूक सी उठती है
तड़प बढ़ जाती है
जिसे पाने के लिए
ख्यालों में खोना पड़ता है
दिन-रात रोना पड़ता है
अकेले में
उसे पाने तक !!!

anubhuti prem ki 


प्रेम की अनुभूति 
साँसों में समाकर 
ह्रदय में  बसाकर 
जीवन का अहसास 
कराती है 
जीवन एक पूर्णता का भास कराती है
जिसके पास होती है 
दुनिया में किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ती है  

---राजकपूर राजपूत''राज''
anubhuti prem ki

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ