garv-hai-ye-desh-mera-bhi-hai
- आज कुछ लोग खुद को बुद्धिजीवी मानकर मनचाही परिभाषाएं गढ़ रहे हैं । अपनी सुविधानुसार । जिसके विचार देश की संस्कृति और सभ्यता के लिए घातक है । ऐसे गद्दार लोग देश का खाकर देश के ही विरूद्ध ज़हर उगलते हैं । देश को थकाते है । छकाते है । जिसकी पहचान करना बहुत मुश्किल काम है । सभ्यता का मुखौटा लगाकर पीठ पीछे देश का निरंतर आघात कर रहे हैं । कविता हिन्दी में 👇👇
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गर्व है ये देश है मेरा भी
सुन ले जमीं भी आसमान भी
तेरे वास्ते मेरे देश की मिट्टी
ये मेरा दिल भी मेरी जान भी
वो कौन दुश्मन झांक रहा है
चीर देगें तेरे दिल भी जान भी
वीर जवान सरहद पे खड़ा है
चाहे मिले बहती हवा भी तुफान भी
तेरे लिए सर पे कफ़न बांधे रक्खे हैं
मिट जाने की चाहत भी अरमान भी
मज़ाक उड़ानें का कौन रिवाज बना रहा है
देश के गद्दार भी अपने अनजान भी
मेरा दिल सदा धड़कता है तेरे वास्ते
मेरे दिल की दुआ भी अरमान भी
वो देश भक्त को बारंबार प्रणाम है
जिसने रखा देश का मान भी सम्मान भी !!!
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