Fall of Morality Poem
जब से समाज में
नैतिकता का पतन हुआ है
सारा जीवन
अस्थिर नजर आती है
बिन पेंदी के लोटे समान
ढुलमुल....
जब से लोगों ने
फायदे और नुक्सान की
नजरों से
दुनिया को
देखने की कोशिश की है
ईमानदारी हासिए पर
आकर टिक गई है
बीच बाजार में
बिक गई है
इंसानों की अस्मिता
स्वाभिमान,,
आत्मसम्मान..
जब से सच्चाई की महत्ता पर
लोगों ने सवाल उठाना
शुरू किया है
सच्चाई को ठिकाना नहीं मिला है
कहीं पर ठहरने के लिए
जगह नहीं छोड़ा है
सच्चाई के लिए
जब से लोगों ने
बेहतर जीवन की
तलाश शुरू की है
तब से भटक रहा है
उद्देश्यहीनता के साथ
अकेले अकेले
मनमाफिक धीरे धीरे
रिश्तों को तोड़ते हुए
और जब से लोगों ने
खुद के लिए
जीना सीखा है
सफलता के मापदंड
नए नए गढ़ा है
उसके चेहरे पे
उदासीनताओं की लकीरें
उभर कर आई है
सबके सामने
इस दौर में !!!!!!
Fall of Morality Poem
जब से समाज ने
सच कहना छोड़ा है
मतलब से रिश्ता जोड़ा है
सब अपने हिसाब से जीते हैं
मायने अपने हिसाब से जोड़ा है
आदर्श स्थापित नहीं किया गया है
जब मर्जी दिल तोड़ा है !!!
पुराने और नए जमाने की बात नहीं है
जो चरित्र था
वो आज भी जरूरी है
बस सुविधाओं में
जीने की आदत है
मनमर्जी से परिभाषित किया है
अपने जीवन को
जिसे नाम दिया गया है
आधुनिकता !!!
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---राजकपूर राजपूत''राज''
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