जो हृदय में समाया है

वो जो प्राणों में बसा है
जो हृदय में समाया है

जो गति दे जाता है मुझे
जिससे ये जीवन पाया है

भले ही उससे परिचित नहीं
जिसने ये सृष्टि बनाया है

मिट्टी का खिलौना बना के
ऊर्जा का प्रवाह बहाया है

अजीब निराले खेल है जिसके
कण कण में जो समाया है

सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म है जो
जिसकी झलक नहीं पाया है

तू है यही कहीं जरूर राज
इसलिए मुझे तू तड़पाया है
---राजकपूर राजपूत''राज''

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