मैं तो चला क्षितिज पार दोस्तों

मैं तो चला क्षितिज पार दोस्तों 


तुम जीना कब शुरू करोगे
तुम लड़ना कब शुरू करोगे

ये उदासियाॅ॑ तुझे मार देगी
तुम जीना कब शुरू करोगे

सुरक्षित मान रहे हो भीड़ को
अकेले चलना कब शुरू करोगे

फर्क नहीं पड़ेगा यहाॅ॑ किसी को
ऑ॑ख मिलाना कब शुरू करोगे

मैं तो चला क्षितिज पार दोस्तों 
मेरे साथ आना कब शुरू करोगे

वो अक्लमंदी के नाम पर बहला रहा है 
ऐसे लोगों को तुम भी बहलाना कब शुरू करोगे

सियासत है उसकी अच्छी  बातें 
समझना कब शुरू करोगे

अपनी बुराई छुपाकर रक्खा है चालाकियों से 
जिसे तुम कब  देखना शुरू करोगे 

सेलेक्टिव है इसलिए एक्टिव है 
कभी सच कहते नही कब समझना शुरू करोगे 

जो छोड़ कर जा रहे हैं जाने दो 
हम जितने हैं काफी है कब समझना शुरू करोगे 
 

---राजकपूर राजपूत''राज''



Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ