रात में सितारें और मैं

रात में सितारें और मैं
तनहा बहुत वो और मैं

सो गई थी सारी बस्ती
जाग रहे थे वो और मैं

हमारे सफ़र में तनहाई है
सिर्फ़ समझते हैं वो और मैं

हमारे दर्द सुने यहाॅ॑ कौन भला
बातें करते हैं वो और मैं

दुनिया नींद में ख्वाब सजाते हैं
जागी ऑ॑खों में क्या देखें वो और मैं
---राजकपूर राजपूत''राज''
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