सबकी चाहत एक सी
तपती धरती को बारिश की बूंदें
अहसास बनाए और ऑ॑खें मूंदें
कोयल कुतरे मीठे आम का फल
बेशक दौड़ लगाए आज और कल
धरती नहीं सिर्फ इंसान के प्यारे
बहती हवा है यहाॅ॑ सबको प्यारे
सबकी पूजा में भगवान की मूर्ति बसे
सबकी चाहत एक सी और आंसू बरसे
प्रेम है अगर सच्चा तो
सबमें खुद, खुद में सब
महसूस हो तो
एक ईश्वर, अनेक ईश्वर फर्क नहीं
जो बंद विचारों में बंधे हैं वे नेक नहीं
---राजकपूर राजपूत
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