Complicated Questions Article उलझे हुए सवाल
आदमी इस तरह से उलझे रहते हैं कि कभी सोच ही नहीं पाते हैं कि वह क्या है ? उसे एक दिन मर जाना है !! इस दुनिया से खाली हाथ ही जाना है । कभी ख्याल नहीं आते कि उसे इस दुनिया से कभी रूखसत भी होना है । कुछ लोग जानते हैं लेकिन मानते नहीं है । दूसरों की मृत्यु को देखकर कुछ समय जरूर भय से व्याप्त हो जाते हैं, वैराग्य जागृत होती है । मगर ये क्षणिक है, कुछ ही पल में पुनः उलझ जाते हैं । अपने ईद गिर्द की दुनिया में ।
उसकी सोच अपने इर्द गिर्द होने वाले क्रियाकलापों को, अपने अंदर उठने वाली चाहतों और विचारों को बौद्धिक और दिल की जज़्बातों से हल करने के प्रयास में निरंतर लगे रहते हैं । खुद के व्यक्तित्व कहें या वर्चस्व या फिर वजूद,, बाहरी दुनिया में अपना प्रभाव डालने की कोशिश करते रहते हैं । हालांकि यह सही या ग़लत कुछ भी हो सकते हैं । खुद को छोटा साबित करना, गवार जान पड़ता है ।
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इंद्रियों के वश में आदमी ऐसे संसार का निर्माण कर लेते हैं । जिसमें उलझे रहते हैं । बाल्यावस्था में दिल के जज़्बात और इंद्रियां पुष्ट नहीं होते हैैं , बौध्दिक क्षमता सजग नहीं होते हैं , जितना युवावस्था मेंं होते हैं । खुद के क्रियाकलापों में अज्ञानता हावी होती है । जैसे जैसे समय बीतता है और युवावस्था में प्रवेश करते हैं । खुद के वजूद को पहचानने लगते हैं । अपनी अहमियत और क्षमता को जानने लगते हैं । हालांकि इस बात को स्वाभाविक रूप से अचेतन मन परिचय कराते रहते हैं । जिसे अधिकांशतः लोग समझ नहीं पाते हैं । दोस्तों की नादानियों से निकल कर बौध्दिक तर्क करने लगते हैं । जिसकी वजह से वो समाज में अपनी पहचान बनाने लगते हैं । जिस स्तर की बौध्दिक क्षमता का परिचय समाज या लोगों के बीच मेंं दिखाएगा , समाज से उसे वैसे ही पहचान मिल जाती है । हालांकि लोग खुद को बेहतर साबित करने में लगे रहते हैं लेकिन ये समाज के पैमाने के आधार पर अच्छा या बुरा हो सकता है ।
ऐसा भी नहीं कि केवल समाज ही आंकलन करें । जब कोई आदमी तुम्हारी किसी बातों का विरोध करें या फिर भिन्न विचार रखें तो जरूरी नहीं है कि आप उसे सहन कर पाएं । हो सकता है कि आप अंदर ही अंदर उसे दुश्मन मान बैठे । और लोगों से दूरी बना लें । इसी सोच की वजह से लोगों को ही खुद से भिन्न मानने लगे । और अपना आकलन स्वयं कर लें ।
कोई भी इंसान अपनी सुखानुभुति के हिसाब से ही चलते हैं । दबी चाहते,, बौध्दिक क्षमता को प्रेरित करते हैं । उसे क्या कार्य किया जाना चाहिए । हालांकि अपना अस्तित्व खुद के भीतर तलाश करने पर भी स्वयं की प्राप्ति नहीं होती है । फिर भी पूरी उम्र यही सोचते हैं कि वह एक पूर्ण इकाई है । जिसे सुख दुःख की अनुभूति होती है । लेकिन उसके अंदर इसे महसूस करने वाले व्यक्ति की पहचान नहीं कर पाते हैं । सारी उम्र यूं ही उलझे रहते हैं ।
उलझे हुए सवाल को
आसानी से सरलता से पहुंचाया
लेकिन सरल सवालों को
कठिनता से
ताकि
बुद्धिजीवी होने का तमगा हासिल कर सकें
आजकल के तथाकथित !!!!
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