Helpless Mankind Poem
मनुष्य अब तक
मान रही थी
कि वह सारी
प्रकृति पर
विजय हासिल
कर लिया है
उसे दंभ था
कि
उससे बड़ा
कोई नहीं है
लेकिन...
एक वायरस
इतना असहाय किया
आज शर्मिंदा है
पूरा मानव समाज
अपनी विवशता पर !!!
Helpless Mankind Poem
कितने बुद्धिजीवी हो जाते हैं
आजकल के लोग
जाति देखकर
कविताएं लिखी जाती है
शोषित, पीड़ित
किसी खास जाति के लोग
और उन्हीं पर फब्ती हैं
कविताएं
बाकी जाति के लिए
शोषक पूंजीपति वर्ग
की उपमा
साहित्य दुनिया
कितनी संकुचित हो गई है !!!!
वो ऐसे साहित्यकार हैं
धर्म विशेष को छूट
बाकी को लूट की भावनाओं से
लिखते हैं !!!
किसी विशेष धर्म,पंथ और जाति पर
नहीं चलते हैं कलम
तो ऐसा मत समझना
उस धर्म विशेष, जाति विशेष में
बुराई नहीं है
वो साहित्यकार कायर भी हो सकता है !!!!
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---राजकपूर राजपूत''
1 टिप्पणियाँ
Nice
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