अपनी गति में

बहुत तेज गति से
चल रहे थे तुम
और तुम्हें लगा होगा
कि
ये नदी,, तालाब 
ये झरने,, पहाड़
और पेड़-पौधे
दौड़ रहे हैं
तुम्हें छोड़ रहे हैं
और तुम
स्थिर हो 
एक जगह
सबको देखते हुए

जबकि
सब कुछ ठहरे थे
तुम ही तोड़ रहे थे
इनसे रिश्तों को
अपनी गति में
जो सच था..
जिसे मान नहीं रहे थे
तुम
अपने ख्यालों में
ला रहे थे
अनायास..
एक भ्रम को !!!

पहाड़ भी भर-भरा जाते हैं 
जब नदी का पानी 
रिस जाता है 
उसकी बुनियाद पर !!!!
-----राजकपूर राजपूत ''राज''

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