व्याख्यान देने की
जरूरत नहीं है
और ना ही
प्रर्दशन की आवश्यकता है
प्रेम की परिभाषा नहीं होती
आकर्षण नहीं होते हैं
ठहराव के लिए
प्रेम तो
मौन की भाषा है
जिसकी कोई
सीमा नहीं होती है
गहराई की
सिर्फ ऑ॑खों की
स्वीकारोक्ति काफी है
हृदय में बसने के लिए
एक दूसरे के
चुपके से
देखते ही
दर्द उमड़ता है
प्रितम को
असहनीय -
पीड़ा के बीच
सुकून का
अहसास होता है
जब वो पास होता है
जिसके इर्द-गिर्द
घूमती है दुनिया
और कब
बाहरी दुनिया से
दूर हो गए
एक दूजे के हो गए
समझ नहीं पाते
ये बाहरी दुनिया
---राजकपूर राजपूत''राज''
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