बुढ़ापे की मांग

मृत्यू

धीरे-धीरे

मेरी इन्द्रियों की

स्मृतियों की....।

तुम्हारा मुंह बनाकर कहना
और मेरा न सुनना -देखना
पडे़ रहना
जैसे मरना-जीना
एक समान
बोझ होना।

   मृत्यू

मेरी यादों की
पल-पल की
जो गुजरे थे
अच्छे-बुरे दिन
निकल पडे़
मेरी आखों से
हृदय-व्यथित से..।

जिन्दगी मेरी -सुना
मेरा एक- कोना
टकटकी लगाऐ -देखना
आस भरी नजरों से
महत्व न देना
तेरा दिमाग से
मेरा बुढा़पा
मांग रहा है-

   मृत्यू

खाट से,बिस्तर से
शरीर के दुर्गंध से

मैं तो सभी से कहता हूं..
   
    मांग मृत्यू

मेरा भगवान से
तु खुश हो जा
हृदय से..।

मैं तो व्यथित हूं
इस आत्मा से
  देर करे
इस शरीर से ।


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