तब मुझे लगता है

तब मुझे लगता है 


जब भी तुम
मेरे स्मृतियों के
पटल में
रौशनी बनकर उभरती हो
मेरा अहसास
और बढ़ जाता हैं
तुझे पाने की ललक
बनकर तड़प
छाए जाता है
मैं उस पल
जीवन की
  नई ऊँचाइयों को
महसूस करता हूँ
अपने अंदर
और उस एहसास में
खो जाता हूँ
अपना अस्तित्व
तुझे पाकर

तब मुझे लगता है
ये पत्ते-पत्ते के
कोमलता में
झरनें के गीतों में
और ये बहती हवाओं में
जैसे तुम हो
मेरे सांसों में..
समा जाते हो
जिन्दगी में
अहसास बनकर
फैल जाते हो
दर्द बनकर
मीठी-मीठी..

और इस जिन्दगी के
थकावट में
तुम ही सुकून हो
और मेरा असीम आनंद
जिसे में बरसों से
तलाश रहा था
दर-दर भटक रहा था

तब मुझे लगता है
ये दुनिया
व्यर्थ है
और तुम
मेरी मंजिल
जहाँ मुझे रुकना है
ठहरना है !
----------------- राजकपूर राजपूत


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