ना सोने का तन है

न सोने का तन है,
न संगमरमर का रूप
काया मिट्टी का
लेकिन है खुब

न उनके पास अच्छे कपडे़ है
और न ही मंहगा इत्र
नहीं उसकी किस्मत अच्छी
और नहीं कोई साथी -मित्र

फिर भी जीने के नए अंदाज हैं उनके
जिन्दगी काटने के नए ढ़ंग है उनके

तोड़ के पत्थर वो पानी निकाल देते
चीर के सीना अन्न उगा देते

देख के तरस जाओंगे उसके बेफिक्री को
ऊबड़-खाबड़ जगह में भी पा ले चैन को

नहीं  करते है कभी वो आराम
हे ! धरती पुत्र ,तुझे बार-बार प्रणाम

---राजकपूर राजपूत''राज''




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