जब भी मैं

जब भी मैं-
खुद को तलाशता हूॅ॑ 
इस दुनिया से
बहुत दूर पाता हूॅ॑
और खुद को
खुद के करीब ले आता हूॅ॑
जब भी मैंने सुनी है
इस दुनिया की बातें
और उसके मनमाफ़िक इरादें
मुझे तकलीफ़ दे जाती है
सवालों पर सवाल कर जाना
जवाब नहीं दे पाना
बरगलाते है,,,,,
उद्देश्य हीन होकर
आंदोलित करना ,,, 
अपने स्वार्थ अनुकूल बनाना 
और चले जाना तोड़कर
अकेला छोड़कर

इसलिए मैंने कुछ सिध्दांत
स्थापित किए हैं
अपने लिए
जिसपर टिका रहता हूॅ॑
मैंने खुद से
कुछ वादे किए हैं
अपने जीवन में
दुनिया से लड़ने के लिए
अपने इरादें मजबूत किए थे
अकेले,,अल्हणपन में
और मैं नहीं हारा
खुद का सहारा
इसलिए...
दुनिया से दूर
खुद के करीब हूॅ॑ !!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''



 





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