ये दर्द भी कितना मीठा है
तेरे सिवाय दुनिया झूठा है
सम्भाल के रखे हैं यादें तेरी
आंसूओं के हर बुंद मीठा है
बसाऊं कहां में दुनिया को
दिल में जो तु ही बैठा है
तड़प- तड़प के आहे भरे
किस्मत न जाने क्यों रूठा है
अपना सुध बुध न राख सके
मिलन की चाह दिल में उठा है
आ भी जाओं मेरे हमसफर
तेरे बैगर ये मौसम रूठा है !!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
1 टिप्पणियाँ
Nice
जवाब देंहटाएं