बदल गए हैं जमाने या आदमी कुछ ज्यादा

badal-gaye-hain-jamaane-आदमी अपने ही बुद्धि से निमार्ण करता है अपना संसार । क्योंकि बुद्धि को दिल से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है । दिल धोखा खा सकता है मगर दिमाग नहीं । इसलिए बुद्धि के हिसाब से चलते हैं । खुद को चालाकियों से बांधते हैं । तर्कों का ऐसा निर्माण करते हैं कि स्वयं उसमें उलझे रहते हैं । कहीं वे ठगे न जाए । बस इसी होशियारी में डरने लगते हैं । सभी लोगों को संशय की नजरों से देखते हैं । खुब सम्हलते हैं लेकिन गिर भी जाते हैं । कविता हिन्दी में 👇👇

badal-gaye-hain-jamaane

बदल गए हैं जमाने या आदमी कुछ ज्यादा
सुविधा के दौर में सच से झूठ कुछ ज्यादा

बात एक ही थी और शोध हुए कुछ ज्यादा 
ठहरने ना दिया प्रेम को वहाॅ॑ तर्क कुछ ज्यादा 

अपनी-अपनी मर्ज़ी है यारों जैसे भी जीओ
देखो हो ना जाय पानी कम शराब कुछ ज्यादा

हाॅ॑,वो भले मानुष था बातें की मुझसे दिल से
इरादें अच्छा लगा उसका सफाई कुछ ज्यादा

इश्क की जुबान कहाॅ॑ खामोशी ताकत है जिसकी
यकीं नहीं उसे शायद वादा किए थे कुछ ज़्यादा

उसके दावों पर यकीन नहीं है मैं सच कहता हूॅ॑
फिर क्यों खुश हुए और ताली बजाएं कुछ ज्यादा

सबके इरादें घर से निकलते ही चेहरा बता देते हैं
वो डरने लगे हैं और अब सम्हलते है कुछ ज्यादा

चालाकियाॅ॑ दिखाना भी तो यहाॅ॑ अक्लमंदी है "राज"
चलों ! जमाने के साथ पिछड़ ना जाओ कुछ ज्यादा !!!

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---राजकपूर राजपूत''







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