Poetry Inside Man
जानकर - न जाने भी
मानकर - न माने भी
प्यार कर- घृणा भी
मासूम बन- होशियार भी
लेकिन आदमी के अन्दर
पलते सच्चाई कुछ भी
सागर भी
बहता हुआ नदी भी
खडे़ हुए पर्वत भी
भरे हुए मैदान भी
दिखे सुन्दर भी
लेकिन आदमी के अन्दर
मायने कुछ भी
Poetry Inside Man
करे विकास भी
धंधा-व्यापार भी
तो काट दे
सागर -पर्वत भी
नदी-पेड़ भी
लेकिन आदमी के अन्दर
इन बातों का -
सुख भी-दुःख भी
सुविधा के हिसाब में
कीमत कुछ भी
मीडियां-राजनेता -अभिनेता भी
दोस्त -दुश्मन भी
रक्षक -भक्षक भी
दिखाएं कुछ भी
बताएं कुछ भी
लेकिन आदमी के अन्दर
निजी -स्वार्थ कुछ भी
देश-दुनिया भी
गांव -शहर भी
बुध्दू -विद्वान भी
गुण्डा -हीरों भी
व्यक्तिवादी -सभी
लूट भी -छूट भी
बने हीरों भी
प्रेणता भी
गोल -गोल घुमाएं भी
लेकिन आदमी के अन्दर
ऐसी जिन्दगी -ललचाऐं भी .....
सच्चाई एकदम सामनें है
व्यक्ति खुद ही मायने है
अपना हित -
तो ठीक -
वरना पीठ....
आदमी एकदम अकेला
उठना-बैठना -शाम को पीना
खाना-सोना -चलना भी
लेकिन आदमी के अन्दर
दुसरों के प्रति उदासी भी
चतुराई भी,मतलबी भी
फायदे के मौके मिले तो
आदमी नहीं पहचानेगा कभी....
सोचों ! जिन्दगी क्या हो गया
आदमी के अन्दर , आदमी सो गया
उसने अपनी अच्छाइयों को
इस तरह से रखा
जैसे बाकी दुनिया को एक तरफ रखा
स्वयं को छोड़ सबको बुरा देखा
इस तरह मुझे
वो मुझे सबसे बुरा दिखा !!!!
.............................................................
बेमेतरा, छत्तीसगढ़
इन्हें भी पढ़ें 👉 दुनिया से अपनों के बीच
0 टिप्पणियाँ