खुशियाॅ॑ --एक तलाश a search for happiness

Search for Happiness गोविन्द सीधा सादा लड़का था । वो अभी ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे । पढ़ाई-लिखाई में औसत दर्जे का । पढ़ने लिखने के साथ साथ घरों में भी उसे काम करना पड़ता था । जिसके कारण वो अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते थे । जिससे उसके दोस्तों में हमेशा नाराजगी रहती थी । 
गोविन्द यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि वह गरीब आदमी है । माॅ॑-बाप परदेश कमाने जाते हैं । घर में बुढ़ी दादी ही है, जो बहुत कमजोर हो गई है । छोटे मोटे कामों को तो दादी कर लेते थे जैसे- खाना निकाल के देना, झाड़ू लगाना ,लिपने पोतने का काम , लेकिन पानी भरना ,खाना बनाना , घर के गौशाला से गोबर निकालना सभी काम गोविन्द को ही करना पड़ता था ‌।
बड़ी बहन तो ससुराल चली गई थी । छोटा भाई अभी सातवीं कक्षा में था । 

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इतने सारे काम करने के बाद भी वह रोज अपनी शाला में उपस्थित हो जाते थे । हाॅ॑, बीच-बीच में खेती के नाम से छुट्टी जरूर कर देते थे, जबकि उनके दोस्त आए दिन अनुपस्थिति रहते । उन लोगों को घरों में  कोई काम नहीं करना पड़ता था । फिर भी । 
यहाॅ॑-वहाॅ॑ घुमते रहते थे । दिनभर मोबाइल से चिपके रहते । न जाने क्या करते हैं..? गोविन्द को कुछ समझ नहीं आता था । उसे तो लगता कि ये लोग व्यर्थ ही अपना समय बर्बाद करते हैं । 

उनके दोस्तों की शिकायत थी कि वह उसके पास नहीं बैठते हैं । उनके साथ घुमते नहीं है ।  तब गोविन्द कहता कि बैंठ भी जानें का क्या फायदा जब तुम लोग कुछ बात ही नहीं करते हो । घंटा दो घंटे तक बैठने पर भी तुम लोग एकाध बार हूॅ॑...हाॅ॑.., करते हो । तुम लोगों के पास महंगा मोबाइल है । मेरे पास तो कुछ भी नहीं ।  मुझे तो बहुत सुना- सुना सा लगता है तुम लोगों के साथ में । मेरे पास होता तो शामिल हूॅ॑, ऐसा लगता ।  इससे अच्छा तो मुझे घरों के काम करने पर लगता है । वह दोस्तों के पास रहते तो कई बार उपेक्षित महसूस कर जाते ।  

फिर भी उसका मन दोस्तों की जिंदगी जीने के तरीके को देख वैसे ही जीने के लिए लालायित हो जाते । उनके महंगे फोन और कपड़े..उन लोगों का जिंदगी भी क्या मस्त है .? मेरे पास भी होते तो उनके साथ शामिल रहता । सभी साथी अपने मोबाइल, फोन पर खुश रहते थे । उसके पास खुश होने की वजह नहीं था । 
 भगवान ने हम लोगों को गरीब बना के भेजा है । जब किस्मत में नहीं तो हम लोग क्या कर सकते हैं .! जैसे हमारे माॅ॑-बाप जिंदगी काट रहे हैं वैसे मैं भी जीवन बसर करूंगा। खुद को और अपने माॅ॑-बाप को कोसते । हमारी क़िस्मत ही खराब है ।
उसके दोस्त उसे भी शामिल करने की कोशिश करते लेकिन गोविन्द के पास समय ही नहीं था । मोबाइल की जानकारी कम होने की वजह से उसको बातचीत में असहज महसूस होते थे। 

इसीलिए वह अपने दोस्तों से दूर होने लगा ।  घर के कामों में व्यस्त रहने की कोशिश करने लगे । लेकिन कब तक.. मन के विचारों को टिकने के लिए भी तो कोई वजह होनी चाहिए । उसके पास ऐसी कोई कारण नहीं था । 
गोविन्द खोया- खोया- सा रहने लगा । घर के सारे काम करते । स्कूल भी जाते। लेकिन चेहरे पर उदासी रहते । न जाने कौन सी बातें थी जो उसको परेशान करता था । किसी से बात भी करना चाहते तो  किससे..! उसके दोस्त तो अपने व्यस्थ थे । 
इन सब बातों का असर यह हुआ कि उसे अब किसी कामों में मन नहीं लगता था । घर के काम और पढ़ाई-लिखाई तो करते थे लेकिन उत्साह नहीं था ।मन नहीं लगता था । केवल औपचारिक । 
उसके माॅ॑-बाप साल के बीच मेंं आएं थे । तब गोविन्द ने महंगा  फोन लेने की बात कही थी । जिस पर माॅ॑-बाप ने ध्यान नहीं दिए । यह कहके कि अभी जरूरी नहीं है । अपना ध्यान पढ़ाई-लिखाई में लगाओं । 

क्या मैं अभी भी छोटा बच्चा हूॅ॑ .? ग्यारहवीं कक्षा में हूॅ॑.? उम्र सोलह- सत्रह  का हो गए हैं । फिर भी माॅ॑-बाप को बच्चा लगता हूॅ॑ । क्या मेरा शौक रखना गलत है .? और भी कई सवाल माॅ॑ -बाप पर उठाते । उस समय लगता था उसको कि उसके माॅ॑-बाप दुनियां में सबसे बुरे हैं । जो उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकते  ।

इन्ही सब बातों को सोच -सोच तनाव में आ गए । थक गया । जैसे उसने अपने जीवन में  जो भी परिस्थिति है उसे स्वीकार  कर लिया हो । जिसमें कोई उत्साह नहीं रहा ।बस नीरस जिंदगी बना लिया ।

जब परीक्षा हुई तो उसका कक्षा में स्थान दोस्तों से भी बहुत पीछे था । उनके दोस्त हॅ॑सते थे । इसके कारण से हम लोगों के माॅ॑-बाप दबाव डालते हैं कि देखो.! गोविन्द को पढ़ाई-लिखाई के साथ -साथ कितना मेहनत करते हैं और तुम लोग हो कि सुबह हुईं नहीं मोबाइल लेके बैंठ जाते हो । ये रंग-बिरंगे बाल,ये कपड़े- लत्ते , गलियों में घुमना.. हमारी सभी आदतों का उलाहना करते हैं ।
 
आज दिख गया कि कौन सही है कौन गलत .!
उनके दोस्तों को कहने के लिए जगह मिल गया था । ऐसा भी नहीं कि वे लोग बहुत ही अच्छे अंक लाएं थे । केवल उत्तीर्ण बस हुए थे । जिसमें गोविन्द से दो चार नम्बर ज्यादा । 
गोविन्द को ये सब बातें कोई मायने नहीं रखता था । उसके मन में तो इस बारे में विचार भी नहीं आया । वह तो थके -थके कल भी दिख रहे थे, आज भी है ।

इधर दादी पोते की हालात को देख परेशान थी । उसके परीक्षा में कम नम्बर पाएं जाने की ख़बर हो गई थी । आखिर उसने अपने पोते से कहा:- "क्या बात है गोविन्द परीक्षा में बहुत कम नम्बर कैसे मिले हैं । कुछ परेशानी है क्या बेटा.!"
"नहीं दादी कोई ऐसी बात नहीं है । पता नहीं कैसे पिछले साल की अपेक्षा नम्बर कम आ गया । " गोविन्द ने कहा । 
"फिर भी बहुत दिनों से देख रहा हूॅ॑ ! तुम कुछ परेशान सा रहते हो ।"

इतना सुनते ही गोविन्द चुप हो गया । दादी को देखने लगा । मानों कोई उसके दुःख को छू लिया हो ।

"कुछ भी हो बताओं बेटा । मन हल्का होगा ।"

"दादी.! हम लोग हमेशा गरीब ही रहेंगे । पिताजी कैसे काम करते हैं.? हमारी गरीबी कभी दूर नहीं होती है ।"

"तुम्हारी बहन की दो साल पहले शादी किया है,जिसका कर्ज अभी तक कुछ बचा हुआ है । उसके बाद तुम दोनों भाइयों के लिए घर भी तो बनाना है । फिर शादी तुम लोगों का । बेचारे के सामने तो काम ही काम है ।"

"फिर भी कोई अच्छे काम करना चाहिए । जिससे कुछ शौक भी पूरा हो जाएं । "

"तुम्हारे पिता भी हम लोगों को ऐसे ही कहते थे । वो भी अपने पिताजी को बहुत कोसते  । कभी भी उसके पिता ने अपनी मेहनत से घर की हालतों को नहीं सुधार पाएं । उस समय भी मैं यही कहता था कि तुम (उसका लड़का) अपने समय पर सुधारना लेकिन तुम्हारे पिता भी घर की हालत नहीं सुधार सके । आज तुम कह रहे हो । ये शिकायत हर पीढ़ी में रहती हैं । न जाने कब से चली आ रही है । "
दादी थके मन से लेकिन गोविन्द को समझाते हुए कही । 
"अपने बेटे के पक्ष में हो दादी ।"

पोते की बात सुन दादी मुस्कुराई। फिर कही:-
"नहीं बेटा.! जब आदमी यदि किसी काम को बेहतर करना चाहता है तो उसे खुद करना चाहिए । आज तुम परीक्षा में नम्बर कम लाएं हो तो आगे की पढ़ाई को भी कठिन बना रहे हो । जब तुम्हारा परिवार हो जाएंगे,उस दिन तुम्हारे बच्चे तुमसे यही सवाल करेंगे । उस दिन क्या जवाब दोगें ..?आगे के बारे में सोचें हो. क्या करोगें..? नहीं ना..! फिर अपनी किस्मत पर क्यों रोते हो.? "

दादी की बातों को सुन गोविन्द चुप हो गया । कुछ ना कह सका । सोचने के लिए मजबूर हो गए । 
ठीक ही तो कहती है दादी ! मुझमें तो अभी से अकर्मण्यता आ गई है । मन ही मन संकल्प किया कि आज से मैं भी पढ़ लिख कर अपने घरों की हालत सूधारुंगा। 
किशोर मन का संकल्प स्थिर नहीं रह पाता । भावनाएं पल छिन बदलते रहते हैं ।  जब तक उसे सम्भालने वाला कोई ना हो । 
जब दोस्तों से दूरी बनाया तब उसके दोस्त उसे मजाक उड़ाने लगे । ये पढ़ लिख कर कलेक्टर जरूर बनेगा । आप सब देख लेना । हमारे में वो हिम्मत नहीं है । इसलिए तो हम घुमते फिरते हैं । 
दुसरा साथी कहता कि बिना पैसों के तो आजकल नौकरियां नहीं मिलती है । गरीबों के सपने धरे के धरे रह जाते हैं । 
तीसरा कहता किस्मत में लिखा कहीं नहीं जा सकता । जिसके किस्मत में है उसे कोई छिन नहीं सकता है । बड़े - बड़े पढ़ें -लिखे घुम रहे हैं । तो हम किस खेत की मूली है ।
 
जिसे सुन गोविन्द सोच में पड़ जाता था । निर्णय सही नहीं कर पाते कि वह जो कर रहे हैं, सही है या गलत । द्वद्व में पड़ गए । मन के नकारात्मक ऊर्जा उसमें अकर्मण्यता के भाव भर देते ।किस्मत ही सब कुछ है तो फिर लोग व्यर्थ ही मेहनत करते हैं ।   
 मानसिक दबाव व्यवहार में झलकता है । बातों में उदासी, शारीरिक क्रिया बहुत कुछ कहती हैं । जिसे दादी अच्छी तरह से समझती थी । एक दिन अपने पोते से कही:-
"क्या हुआ गोविन्द फिर उखड़ा- उखड़ा सा है । पढ़ाई-लिखाई भी कम कर दिए हो ।"
"कुछ भी तो नहीं"
"कुछ बात है जो तुम्हें परेशान कर रहा है । मन की बात किसी से कह देना चाहिए । नहीं निकलने पर अवसाद बन जाता है  । "

कुछ समय तक गोविन्द दादी को देखते रहे । दादी भी अजीब है । कैसे इसको पता चल जाती है ..! मेरे मन की बात ।
"दादी ये किस्मत भी होती है । यदि सब कुछ किस्मत में है तो फिर हमें मेहनत का क्या मतलब.?"

"नहीं बेटा.!  किस्मत को मानने वाले अपनी सुविधा में जीते है । सहज प्राप्ति पर भरोसा करते हैं । एक प्रकार से आलसी लोगों के लिए है किस्मत । "

"तो सब लोग कहते हैं वह गलत है ।"

दादी मुस्कुराई और चुप हो गई । जिसे देख गोविन्द को बहुत बुरा लग रहा था । 

"क्या हो गया..? दादी चुप क्यों हो गई ? "

"रहने दें.! तुम भूल जाते हो । "

"क्या मैं भूल गया । पहेली मत बुझो ।"
 
गोविन्द नाराज हो रहा था जिसे देखकर दादी ने कहा:-
"यही कि तुम्हें क्या बनना है ! कहते तो जरूर हो कि मैं घर की हालत सुधारुंगा । लेकिन झूठ है । यदि तुम सचमुच ऐसे करने वाले होते तो किसी अन्य के सपने नहीं बुनते । खुद के सपनों को सजाते । तुम्हारे दोस्त उद्देश्यहीन है, जिससे प्रभावित होकर मानसिक तकलीफ़ झेल रहे हो । "

दादी की बातें गोविन्द को झंकझोर दिया । उसकी एक-एक बातें कौध गई । कुछ देर दादी चुप रही । उसकी बातों का असर पोते पर होते देख । दादी फिर कही :-

"किस्मत,अवसर है बेटा ! जिसे तलाशना और संवारना रहता है । बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है । सूरज की किरणों के संग सभी पंक्षी निकल जाते हैं, दानें की तलाश में । वे डरते नहीं कि हमें दाना मिलेगा भी या नहीं बस मेहनत और कोशिश करते रहते हैं । कोशिश करने वाले को भगवान कभी भुखा नहीं सुलाते । बिल्ली गाय नहीं पालती लेकिन दूध पी जाती है ।"

कुछ देर तक घर का माहौल शाॅ॑त रहा । दोनों चुप रहे । गोविन्द सोचने के लिए मजबूर हो गए । दादी तो यही चाह रही थी । गोविन्द सोचें और उस अवसाद से निकल कर बाहर आए। जो बना लिए थे । 

 "अपने सपनों को याद रखें । उससे प्रेम करोगे तो  ये बाहरी दुनिया तुम्हें उलझा नहीं सकता है ।"

दादी उसमें उत्साह भरते रहे । गोविन्द की ऑ॑खों मेंं उसे भविष्य की सपने दिख रहा था । 
उस दिन से दादी, गोविन्द का साथी बन गई ।वह अपने पोते के सपनों को सजाने लगी ।  गोविन्द बाकी कक्षाओं में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होते गए ।  बीच-बीच में माॅ॑-बाप भी सहारा और सहयोग देते रहे । 
पोता को फिसलते देखती तो दादी बीच में सहारा और हिम्मत देती । कहती कि बेटा पढ़-लिख कर केवल सरकारी नौकरी पाना नहीं है । शिक्षा इंसान को किसी कार्यो में कुशलता देती है । सभ्य बनाती है । जीवन को सरलता से जीने की कला देती है ।
 
गोविन्द अपने मेहनत के साथ- साथ कई पदों के लिए आवेदन करते रहे । कई बार के प्रयास से आखिर उसकी तलाश रंग लाई । उसे एक सरकारी विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई । घर में बरसों की खुशियाॅ॑ आ गई थी । पहली तनख्वाह मिलते ही गोविन्द की खुशी का ठिकाना ना रहा ।माॅ॑-बाप और दादी की ऑ॑खें नम थी ।  अपने दादी के लिए नए शाल खरीदा । जिसे पाकर दादी  गदगद हो गई । कई पीढ़ी की खुशियां उसके पोते ने उसकी आंचल में डाल दी थी । अपने पोते को भविष्य की दुआ दे रही थी ।
उसके दोस्त कहते रहे कि गोविन्द की किस्मत अच्छी थी । हमारी किस्मत में कुछ नहीं  है । हम लोग अभागे हैं ।
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