ये दुनिया का कैसा दस्तुर

ये दुनिया का कैसा दस्तुर है
गले मिलाया फिर भी दूर है

फासले नहीं रखते बातों में
बस दिल में सियासत जरूर है

उसकी अदाऐं तो कातिल है
फोन से झूठ बोलते जरूर है

कभी हॅ॑स भी लिया करों यारों
जाने वो किस चाहतों से मजबूर है

दुनिया में हो तो जीना ही पडे़गा
हाँ,सफर में धूप तो जरूर हैं

महकाओं अपनी जिन्दगी को 'राज'
बुला रहा है मंजिल जाना जरूर हैं

--------राजकपूर राजपूत "राज"


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