वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
एक- एक दाना
चुगतें और ढूंढ़ रही थी
नहीं जिसे कोई दुनिया की चिंता
जो अपने खुशियों में जीता
लेकर दाना अपने चोंच में
जो लोट आई अपने घोंसले में
एक- एक दाना जो
अपने बच्चों को खिला रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
पंख फड़फडा़तें
अपने बच्चों को जो देख मुस्कुरातें
जिसकी नादानी में खुशियां मनातें
बच्चों की चीं चीं अद्भुत अहसास दिलातें
अपने मघुर स्नेह
जिस पर बरसा रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
जिसे कल की फिक्र नहीं
किसी से शिकायत भी नहीं
जो अपने आज पर
खुशियां मना रही थी
बेशक अपने कल के लिए
प्रभु से दुआ कर रही थी
वह चिड़िया जो
हुई सुबह और निकल गई थी
------------राजकपूर राजपूत "राज"
1 टिप्पणियाँ
बढ़िया
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