जर्रे-जर्रे में मेरी मायूसी है आ के देख
बिखरें हैं घर का सारा समान आ के देख
फूलों सा चमकता था चेहरा मेरा
धुल जमा है आइनें में साफ करके देख
गुजरें थे कई हंसीन शाम जिसके तले
सुखा पडा़ है वह पेड़ पानी डाल के देख
जिन्दगी मेरी उलझ गई अधूरे अरमानों में
दरार पडे़ जमी़ है बादल बरस के देख
संभाल के रखे हैं अपने ख्यालों में तुम्हारी यादें
मिलेंगे बाग-बगीचें,नदी-झील किनारे आ के देख
__ राजकपूर राजपूत'राज'
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