Story of an Ignored Woman in Hindi सास जो चाहती थी, उसे पति इशारा पाकर करते थे। खेत के काम से लेकर पत्नी की हरकत पर सास की पैनी नजर थी। बेटे को ऐसे ही संस्कार दिए थे । जिसके बाहर जाकर सोच भी नहीं सकते थे । जहां उसे कामों में लापरवाही दिखती थी, वहां तुरंत टीका-टिप्पणी कर देती थी। इसके कारण लता के पति का दृष्टिकोण स्वतंत्र नहीं हो सका था। सुरेश को भी मां की बातें सही लगती थीं, तभी तो हर काम में वह मां की सलाह या सहमति लेता था। खेत की फसलों में किस समय खाद डालना है, कितनी मात्रा में दवाई का छिड़काव करना है, गांव जाना है या नहीं, सब कुछ मां के अनुसार ही होता था।
Story of an Ignored Woman in Hindi
हद तो तब हो गई, जब लता मायके फोन से बात करती थी, तब सुरेश उसके आगे-पीछे मंडराते रहते थे। कहीं घर की बुराई तो नहीं कर रही है? क्या सलाह देते हैं मायके वाले? शुरू-शुरू में उसे सहज लगती थी, स्वाभाविक रूप से बिना संकोच के बातें करती थी। जो कहना या सुनना है, मायके वालों से ऊंची आवाज से बातें करती। लेकिन अब कमरे में जाने के बाद पति का बड़बड़ाना शुरू हो जाता था ।
"क्या यह घर तुम्हारा नहीं है? ससुराल का मान-सम्मान करना हर लड़की का दायित्व है। तुम्हें भी करना चाहिए। हर बात को मायके वालों को बताना सही नहीं है । "
इतना कहकर करवट बदलकर सो जाते थे। जो रोज की आदत बन गई थी । लता जवाब नहीं देती थी, बस चुपचाप सुनती रहती थी और अपने मन में घुटती रहती थी। अविश्वास ऐसे बन गया है कि किसी भी बात पर विश्वास ही नहीं ।
एक बार लता के पिताजी से सुरेश ने पैसे मांगे थे ।घर खर्च के लिए । लेकिन पिताजी किन्हीं कारणों से मदद नहीं कर पाए । तब से इन लोगों का मुंह फुला हुआ है । किसी की मजबूरी इन लोगों के लिए कोई मतलब नहीं है । उस दिन से लता इनकी नजरों से गिर गई और इन लोगों के व्यवहार में बदलाव आ गया ।
लता घर के सारे काम करती थी, बिना किसी के आदेश के। मतलब न सास को बताने की जरूरत होती, न ही पति को। उसे अब किसी का काम बताना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उसने हर काम अपनी आदत में डाल लिया था। वह अपने कामों को स्वतः ही पूरा करती थी, जिससे घर में किसी को बहस या झगड़े करने का मौका न मिले । फिर भी सास कुछ काम ऐसे बताती थी । जिसके बारे में उसका ध्यान नहीं जाता था ।
शासन चलाने वाले अक्सर थकाने की क्रिया को अच्छी तरह से जानते हैं और इसका उपयोग अपने विरोधियों या अधीनस्थों पर दबाव बनाने के लिए करते हैं। यह थकाने की क्रिया कई रूपों में हो सकती है । सास, महारानी से कम नहीं थी ।
लेकिन लता सास की आदतों से नहीं थकती थी । वो तो पति के पिछलग्गू बन जाने से हारती थी । यदि वे साथ होते तो सारे काम हंस कर कर लेती । लेकिन क्या करें, किसी की मानसिकता तो नहीं बदली जा सकती है ।
उस दिन पड़ोसिन कुछ काम से आई थी । सासु मां से बात कर सीधे लता के पास आ गई । घर की समस्याओं को बताने लगी । घर का काम कितना हो जाता है , नहाने खाने की सुध नहीं रहती है । चाहे जितना भी कर लो , देखते-देखते सुबह से एक बज जाते हैं । मगर काम खत्म होने का नाम नहीं लेता है । गौशाला से गोबर निकाल, फिर बच्चों को तैयार करों उसके झाड़ू पोंछा और खाना बनाना । थक जाती हूं मैं, मगर आराम करने का समय नहीं मिलता है ।
वह किसी को नहीं, लता को सुना रहा था। सासू मां वहीं पास बैठी मुस्कुरा रही थी, बेटे की बहादुरी देखकर। सुरेश भी खुश था, यह दिखाकर कि वह कभी भी अपनी बीवी का गुलाम नहीं बनेगा। दूसरे आदमी के सामने लता को नीचा दिखाकर, उसका भला-बुरा कहना यही साबित करता है। लेकिन लता से रहा नहीं गया, और उसने अपनी बात कहने का फैसला किया।
"मैं कोई नौकरानी नहीं हूं, जो सुनती रहूंगी तुम्हारी बेवजह की दखलअंदाजी को। गलती है तो समझ आती है, लेकिन रोज-रोज का यही किस्सा है। कब तक चुप रहूंगी? जितनी सहती हूं, उतने ही चोंच मारते हो। अगर दुबारा हुआ तो मैं मायके जाऊंगी, लेकिन इस घर से जमीन-जायदाद का हिस्सा लेकर। ऐसा केस करूंगी कि सात जन्म तक याद रहेगी।"
कैसे कर पाएंगी वो । उसने तो पति के बिना एक कदम भी नहीं चलना सीखा है, लेकिन अब वह अपने निर्णयों के लिए खुद जिम्मेदार होने का संकल्प ले रही थी। मायके की स्मृतियों का खयाल रह-रहकर सीने में एक टीस पैदा कर रहा था, लेकिन उसने तय किया कि वह यहीं रहेगी और बच्चों का ख्याल रखेगी , लेकिन गलत बात सहूंगी नहीं । लता संकल्पित होकर सही मायने में आज मुक्ति का एहसास कर रही थी। सोचते-सोचते कब आंख लग गई, उसे पता नहीं चला ।
उस दिन से सासू मां और उसके पति सही तरीके से बोलते तो नहीं, मगर गलत भी नहीं करते थे। शायद उन लोगों ने लता को उस घर में नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन यह भी सच है कि उसने भी उन लोगों को नजरअंदाज कर दिया था। अब वे जीते थे तो सिर्फ बच्चों के लिए। शायद उसकी जिंदगी भर यही स्थिति रहेगी। पति शारीरिक पूर्ति के लिए उपस्थित थे, लेकिन भावनाओं के लिए नहीं। कुछ रिश्ते ऐसे ही चलते हैं, जिसे उसने स्वीकार कर लिया था।
भगवान ने भी आते ही दो बच्चे दे दिए हैं। अब वह कहां जाएगी? यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लता अपने बच्चों के लिए अपने जीवन को समर्पित करने के लिए मजबूर है, भले ही उसके पति और सास के साथ उसके रिश्ते अच्छे न हों। बच्चों की जिम्मेदारी और उनकी जरूरतें अब लता के जीवन का मुख्य केंद्र बिंदु बन गई थी ।
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