पति का घर है, मेरा नहीं This is My Husband's House, not Mine. Story

 This is My Husband's House, not Mine. Story असहाय स्त्री वह होती है जो अपने जीवन में विभिन्न चुनौतियों और समस्याओं का सामना करती है, शारीरिक और भावनात्मक रूप से टूटी हुई , लेकिन उसके पास उन्हें हल करने के लिए जरूरी उपाय, समर्थन या शक्ति नहीं होती है। वह अक्सर अपने अधिकारों से वंचित होती है और समाज में उसकी स्थिति कमजोर होती है।

 This is My Husband's House, not Mine. Story

मां बाप की मृत्यु के बाद देवश्री के मायके में कोई पूछ-परख करने वाला नहीं था । उसके ससुराल, भाई कभी कभार , साल दो साल में आ जाते थे । कहने के लिए तीन भाई हैं । लेकिन देवश्री के लिए कोई मायने नहीं रखता था । सबकी शादी हो चुकी थीं । अपने परिवार में सभी खुश और व्यस्त हैं ।
तीज-त्योहारों पर पड़ोस की उसकी सहेलियां मायके चली जाती थीं । वो ससुराल में ही रह जाती थी । भगवान ने भी आते ही दो बच्चे दे दिए । अब कहां जाय !
इसी बहाने से उसका सम्मान ससुराल में भी नहीं होता था ।  आखिर जाएगी कहां? ससुराल वाले इस बात को अच्छी तरह से जानते थे ।
उसे सख्त आदेश था कि घर की कोई चीज़ बिना पूछे किसी को भी न दी जाए। खेती-बाड़ी और घर का काम करें । खाएं - पीएं और खुश रहे ।
पड़ोस की औरतें जानती थीं कि देवश्री इस घर में केवल एक वस्तु है, जिसे उपयोग किया जाता है, जिसमें न हाय है न आवाज। जैसे चाहे उसे ठोंक दो या बजा लो, कोई फर्क नहीं पड़ता।

देवश्री हमेशा अपने ससुराल वालों को खुश करने की कोशिश करती थी । ताकि वह भी इस परिवार का हिस्सा बन सकें, लेकिन जो नजरों को नहीं भाती हैं, वह सम्मान का हकदार नहीं होता है। घर में ऐसा कोई नहीं था जो उसे समझे, उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करे या उसके साथ सहानुभूति रखे। इस स्थिति में, देवश्री की जरूरतें और भावनाएं पूरी तरह से अनदेखी की जा रही थीं ।
पड़ोसिन बूढ़ी और हमउम्र की औरतें उसके हालात के बारे में कुछ भी नहीं कहती थीं । लेकिन नवविवाहिता दुलारी जब आई और धोखे से कुदाली मांग ली ।
देवश्री उसके मुंह ताकने लगी ।

"अभी घर में कोई नहीं है । बाद में आना । "

"वहां तो है दीदी । "

"हां, देख रहा हूं लेकिन दे नहीं सकती हूं । घर वाले नहीं हैं । "

"आप तो हो ।"

"ये मेरा घर नहीं है । मेरे पति का घर है । हक़ लेने देने का उसका है । मेरा नहीं है । "

इतना सुनकर दुलारी । चुपचाप खड़ी रही । कुछ न बोल सकी । कुछ सोची और चली गई ।


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