A Cup of Tea कपड़े की दुकान में खरीदारी करते समय मनोहर को लगने लगा कि उसे इस बड़ी दुकान में नहीं आना चाहिए था। यहाँ हर चीज़ बहुत महंगी है। इसलिए उसने अपने साथ आए लोगों से धीरे से कहा –
"चलो, किसी दूसरी दुकान पर चलकर खरीदारी करते हैं। यहाँ कपड़े बहुत महंगे हैं।"
A Cup of Tea
उसकी बातें सुनकर उसके साथ आए लोग उठकर जाने लगे। शायद उन्हें भी यहाँ सब कुछ महंगा लग रहा था। सिवाय उसके जो उसे उस दुकान पर लाया था ।यह कहकर कि दुकान पहचान की है । वहां हर चीज़ सस्ती है लेकिन मनोहर को महंगी लगी ।
मनोहर को अपनी बेटी की शादी के लिए कपड़े खरीदने थे। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि किसी महंगी दुकान से खरीदारी कर सके। उसे कर्ज लेकर जैसे-तैसे बेटी की शादी के सारे काम निपटाने थे ।
जैसे ही वे उठकर जाने लगे, तभी दुकान का मालिक भीतर से तेजी से बाहर आया। उसने मुस्कराते हुए हाथ जोड़ लिए और नम्र स्वर में बोला —
"पसंद आए न आए, अब जब आप लोग आ ही गए हैं तो कम-से-कम एक कप चाय तो पीकर जाइए। जिस कीमत में लेना चाहें, उसी कीमत में कपड़ा मिल जाएगा। बस, चाय पीते-पीते कपड़े देख लीजिए। पसंद आ जाए तो ठीक, नहीं तो आगे और भी दुकानें हैं जहाँ आप जा सकते हैं।"
दुकानदार की विनम्रता और अपनापन भरा व्यवहार मनोहर और उसके साथियों को रोक गया। वे एक-दूसरे की ओर देख कर हल्का-सा मुस्कराए और बैठ गए।
चाय आ गई थी। मिट्टी के कुल्हड़ों में गर्म, ताज़ा अदरक वाली चाय। स्वाद भी अच्छा था और माहौल भी अब कुछ सहज हो चला था।
अब दुकान का मालिक अपने असली हुनर पर उतर आया। वह एक के बाद एक कपड़े निकाल-निकालकर दिखाने लगा —
"ये देखिए साब, बढ़िया सूती कपड़ा है, गर्मियों के लिए एकदम सही। और यह लखनवी कढ़ाई वाला है, शादी-ब्याह के लिए बिल्कुल उपयुक्त। यह वाला थोड़ा महंगा है, लेकिन बहुत टिकाऊ है।"
मनोहर और उसके साथी चाय पीने लगे और कपड़ों पर चर्चा करते हुए कहने लगे — "यह वाला ठीक नहीं है... वह थोड़ा बेहतर है... इसकी कीमत कुछ ज्यादा लग रही है... क्या इसमें कुछ कम नहीं हो सकती?"
दुकानदार मुस्कराकर बोला —
"सबकी कीमत कम हो जाएगी, बस आप लोग पसंद तो कीजिए।"
अब बातचीत में गर्मजोशी आ गई थी। दुकानदार कभी कपड़े के धागे की गुणवत्ता समझाता, कभी उसकी कढ़ाई की बारीकी दिखाता। बातों-बातों में हँसी-मज़ाक भी होने लगा। दुकान अब सिर्फ एक व्यापार का स्थान नहीं रही थी — वह एक संवाद, एक अपनत्व का वातावरण बन गई थी।
दुकानदार अब समझ चुका था कि ग्राहक ठहर गए हैं। उनकी आँखों में उत्सुकता लौट आई थी और बातों में रुचि भी। यह संकेत था कि अब सौदा पक्का होने वाला है। उसे अपने अनुभव पर पूरा भरोसा था — जब ग्राहक रुक जाए, तो सामान भी बिक ही जाता है।
असल में, व्यवहार में यदि व्यापार घुल जाए या व्यापार में यदि व्यवहार झलक जाए, तो लाभ ही लाभ होता है।
एक कप चाय की कीमत कितनी होती है? मुश्किल से चार-पाँच रुपये। लेकिन वह एक कप चाय इस समय रिश्ते बना रही थी, विश्वास पैदा कर रही थी, और सौदे को दिशा दे रही थी।
दुकानदार मुस्कराया —अपने व्यवहार की सफलता से, अपने आत्मविश्वास से
मनोहर ने सामान लिया...उसके साथ आए सभी संतुष्ट नजर आए, और उन्होंने बिना किसी झिझक के पूरे पैसे चुकाए। एक कप चाय की वजह से ।
-राजकपूर राजपूत
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