बेटी के आने से घर में रौनक आ गई थी । हर किसी के चेहरे खिल उठे थे । घर का सुनापन भर गया था ।
दो बेटे और एक बेटी है काशीराम के । बड़े लड़के का नाम जय व छोटे का विजय है । जिसे प्यार से सभी छोटू कहते थे और बेटी का नाम सुकन्या थी । बड़े लड़के और बेटी की शादी एक साथ हुई थीं । छोटा बेटा अभी पढ़ रहा है ।
जब रात हुई तो सभी खाना खाने साथ में बैठे । पिता जी ने अपनी बेटी से पूछा -
" घर के सभी लोग ठीक है । आदत, व्यवहार में । सब अच्छे से बातचीत करते हैं । "
"हां, सास ससुर, ननद, जेठ सभी ठीक है ,,पिताजी । हमारे यहां सभी के अपने-अपने काम हैं । जेठ सुबह से चला जाता है अपने काम पर । हमारे घर में अभी तक किसी ने कड़े शब्दों से बात नहीं किया है ।न मुझसे न अन्य लोगों से । खाना-पीना से लेकर हर चीज़ की परवाह करते हैं । हमारे यहां सब ठीक है । आजकल में ट्रैक्टर लेने वाले हैं । खेती के लिए । दूसरों से करवाने पर बहुत पैसे खर्च हो जाते हैं । "
सुकन्या के शब्द -'हमारे यहां सब ठीक है !' सुनकर सभी उसकी ओर देखने लगे । इतनी जल्दी अपने और पराए कर दी । वो भी खुशी-खुशी । खासकर भाभी को बुरा लगा । उसने खाना परोसते हुए कहा -
"इतनी जल्दी मायके भूल जायेगी सुकन्या । हम पराएं हो जाएंगे । आखिर एक स्त्री के तो दो घर होते हैं ।मायके और ससुराल । जन्म से मृत्यु तक इन्हीं रिश्तों में रहना पड़ता है । तुम्हारे 'हमारे' कहने से , क्या हम अलग हो गए ? " भाभी के कहते समय मुस्कुराहट थी चेहरे पर । जो व्यंग्यात्मक लहजे से कहीं गई थीं ।
"भूल से कह गईं । बात करते-करते कुछ शब्द निकल जाते हैं । जिस पर कोई विचार नहीं होता है । यूं ही । टोकने वाले हो तो सुधारा जा सकता है । ठीक है ना बहन । "
जय अपनी बहन को देखते हुए मगर अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा । उसके चेहरे के भाव पत्नी को चुप रहने के लिए काफी था ।
"यूं ही निकल गए । बचपन जहां खेला है । उस जमीन और अपने परिवार को कैसे भूल जाऊंगी भाभी । आप लोगों से कह रहा हूं तो गलत महसूस हो गया । मुझे कहना तो पड़ेगा ही । बाकी दुनिया से । वहां पर आप लोगों को हमारे कह देती हूं । वहां पर भी सभी लोग समझाते हैं । ये घर अब तुम्हारा है । "
" हां, लेकिन हमारे सामने गलत है । "भाभी के इस भाव में अपनत्व , अधिकार था ।
सुकन्या के इस तरह कहने और बहू के समझाने के बाद भी, पिताजी आश्वस्त थे आखिर पिता, पिता है । जो जानते और मानते हैं कि सुकन्या ठीक कह रही है । उसकी आंखें बेटी की पूरी जिंदगी के बारे में ख्याल रख सकती है । उन समस्याओं को पहचान लेती है । जो भविष्य में हो सकती है । इसी तरह से गुजर जाए समय और क्या चाहिए मां-बाप को । लेकिन जिंदगी उतार चढ़ाव से चलती है । पिताजी जानते थे । आज जो है वो आने वाले कल में कुछ और बात होगी । बस हमें तैयार रहना चाहिए ।
खाना खाते समय छोटू ने शरारती भरी बातें कहीं ।
" दीदी अब मोटी हो रही है । तीन चार महीने में ।"
"चुप बदमाश" सुकन्या ने बस इतना कहा और चुप हो गई । छोटू की बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ।
सुकन्या को भी लगा उसके शब्दों में मायके से अलगाव की भावना थी । क्षुब्ध और खेद से भर गया । लेकिन ज्यादा देर तक नहीं । कहीं न कहीं यही सत्य है फिर अपनी नई-नई शादी के ख्यालों में खो गई ।
दूसरे दिन सहेलियों के संग बैठीं थी । अपनी सहेलियों को अपने पति के बारे बता रहे थे । उसकी आदत, खुबियां, अच्छाइयां वगैरा वगैरा ।
उन्हीं में से एक सहेली ने पूछा - इस तीन चार महीनों में तुम्हें क्या लगती है सुकन्या, घर में तुम्हारी चलेगी या तुम्हारे पतिदेव का ।
" कैसी बातें करती हो ! रिश्ते में प्रतिस्पर्धा थोड़ी होती है । न ही शासन चलाने का । प्यार, सम्मान, और उसे समझने वाले हो, बस। रिश्तों में जरूरत के साथ-साथ जरूरी भी हो । एक दूसरे के लिए । पूर्ण हिस्से के रूप में । मैं सरकार चलाने नहीं गई हूं,, परिवार चलाना है मुझे । "
इस तरह जवाब से उसकी सहेली चुप हो गई । जो बातें हंसी से चल रही थी । वो कुछ पल के लिए गम्भीर और शांत हो गया था ।
कुछ देर बाद उन सबकी हंसी ठिठोली फिर शुरू हो गई ।
पिताजी बगल के कमरे में थे । उन लोगों के चुप होने के बाद अपने कमरे से निकल कर गली की ओर चल दिए । पिताजी खुश थे । उनकी बेटी अब सियानी हो चुकी है ।
मुश्किल से आठ दस दिन हुए थे । उसके पति सुकन्या को लेने आ गया । सुकन्या ने पति से कहा
" आप तो पन्द्रह बीस दिन रूकने के लिए कहे थे । फिर इतने जल्दी कैसे आ गए ? "
"घर में बहुत काम पड़े हैं । इधर उधर दौड़ना पड़ रहा है । घरवालों ने कहा कि जा बहू को लिवा ला । इसलिए आ गया । "
जब पति अकेले कमरे में थे । तब उसने कहा
" सच-सच बताओ घर में क्या काम आ गया जो इतनी जल्दी से आ गए । "
"मुझे तेरी याद आ रही थी । "
"मैं जानता हूं । बहाने से मुझे ले जाने आए हो । "
उसके पति नजदीक आने की कोशिश की मगर सुकन्या कमरे से बाहर चली गई ।
उसने अपने मां-पिताजी को बताया कि हम लोग कल जा रहे हैं ।
"इतनी जल्दी "
"हां "
पिताजी ने अपने दामाद बिदा करते समय बस इतना कहा
"कमियां सबमें है बेटा,, थोड़ी बहुत । मेरी बेटी में भी है । उसे नजरंदाज कर देना । "
इतना कहते ही पिता का गला भर आया । जिसे देख बेटी की आंखें भी नम हो गई ।
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