Aadmi ke Ahankar par Gajal
आदमी इतने अहंकारी है कि उसे अपने सिवा कुछ नहीं सूझता हैं ! इसी में अहंकारी वो किसी का अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पता है ! यहाँ तक इश्वर के अस्तित्व को झुठलाता है ! न किसी नियम , निति को नहीं मानता है ! इसी अहंकार पर एक कविता 👇
Aadmi ke Ahankar par Gajal
आदमी खुद को इतना बड़ा मान बैठा है
सच्चाई कम झूठ को सच मान बैठा है
खोया रहता है अपने ही आरजु में
भीड़ में अकेला मान बैठा है
वो खजुर आसमान छू रहा है
जमीन से बड़ा मान बैठा है
है दिन में सूरज रात में चांदनी बहुत
चंद पैसा पा कर आदमी बड़ा मान बैठा है
उसके तर्क में अहंकार की बू आती है
चरित्र नहीं मगर बहस में बड़ा मान बैठा है
आलोचना उसकी नफ़रत भरी हुई थी
वो खुद को अब कबीर मान बैठा है
अपनी ही कुठाओं से फसा हुआ आदमी
चालाकी को ही संस्कार मान बैठा है
वो समझेंगे नहीं अब किसी की बातों को
अपने ही ज्ञान का अहंकार मान बैठा है
सियासत है शामिल अब जिंदगी में
रिश्तों को मतलब मान बैठा है
जिसका सुनना नहीं था राज उसका सुनना पड़ता है
उसन कहने का हक़ मान बैठा है
बहुत कुछ हूँ
क़द्र करोगे तो बहुत कुछ हूँ
प्यार करोगे तो बहुत कुछ हूँ
रिश्ते तुम जैसे चलाओ मगर
याद करोगे तो बहुत कुछ हूँ !!
नफ़रत की जगह प्रेम भरा हो
ज़ख्म चाहें कितना भी गहरा हो
उसे नफ़रत दिखाई न देगी
किसी का समझाना, बताना
उसकी मोहब्बत को रास न आएगी !!!
आदमी बनने के लिए
सीखना जरूरी है
आदमी का व्यवहार
सभ्यता के लिए जरूरी है
नहीं तो कह सकता है
आदमी को आदमी होकर
नहीं समझ सकते
इसलिए सीखा
जो दिखा
आदमियों ने
सफलता के लिए
क्या तरीके अपनाए हैं !!!!
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