झूठ पर दो लाइन - कविता lie-on-two-line-poem-hindi

स्वीकारा है कुछ सत्य-

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 स्वीकारा है कुछ सत्य

जिसके बाहर जा नहीं सकते हैं

राज है दिल में

जिसे बता नहीं सकते हैं

जैसे पवन उस पहाड़ के पार

जा नहीं सकते हैं

जानते हैं स्वतंत्रता की बहाव

उस पार है

मगर मुसीबत रूपी पहाड़

इस पार है

डरे सहमे हुए लोग हैं

कुछ कह नहीं सकते

न खुल के जी सकते हैं

न खुल के मर सकते हैं

एक झूठ का डर से

आदमी इतना लाचार है

जैसे जीवन उधार है

नग्नता का अपने मायने हैं

आदमी झूठ को स्वीकार करने में

बड़े सयाने हैं !!!!

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झूठ ही सही

लेकिन कहो

तुम मेरे हो

कुछ पल तो अच्छा लगेगा

बाद में तो

रंग बदल देना !!!


शिक्षा का अर्थ

तर्क करना नहीं है

जिससे संतोष किया जाय

अपने विचारों को

सही साबित करने के लिए

किसी भी ढंग से

मिलान कर

समर्थन किया जाय

और अपरिवर्तनीय

सिद्धांत स्थापित किया जाय

जबकि शिक्षा

जीवन का सरलीकरण है

आसानी से जीने की कला !!!!


उसके डरने पर

मुझे डर लगता है

वो अपना डर इस तरह से

कहते हैं

सुनने वाला डर जाता है

पूरे अपनी बिरादरी को

डरा हुआ है

समझा लेते हैं

सबको साथ लेते हैं

एक आन्दोलन की तरह

उसका डर

डराने वाला

खुद को

डरा हुआ

महसूस करते हैं !!!!

- राजकपूर राजपूत''राज''

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