Tum-ho-to-kavita-prem-ki
तुम हो तो अच्छा लगता है
ये दिन ये रातें
ये फूल ये पत्ते
ये नदियां ये झरने
ये धरती ये अम्बर
ये मौसम सुहावना लगता है
तुम हो तो अच्छा लगता है
जीने का मजा आता है
तेरा ख्याल रह -रहकर आता है
जाऊं कहीं भी
तू रहता है साथ
रहूं भीड़ में
फिर भी तेरा अहसास
ऐसा लगता है कि
तू है मेरे पास
मेरा सफ़र यूं ही गुजर जाता है
तुम हो तो अच्छा लगता है
न तनहाई घेरती है
न उदासी छाई है
तेरी याद ही काफी है
खुशियां ले आई है
एक झलक पाते ही
जिस्म पे रौशनी
बिखर जाती है
तेरा साथ है तो
सुरक्षित घेरा सा लगता है
तुम हो तो अच्छा लगता है !!!!
Tum-ho-to-kavita-prem-ki
तुम हो तो
ऐसा लगता है
सब-कुछ है मेरे पास
एक अहसास
अपना खास
जिसके मिल जाने से
जरुरत नहीं है
मुझे किसी और की !!!
तुम हो तो
मैं देख नहीं पाया
नफरतें दुनिया की
साजिशें, कातिल
कैसे होते हैं
तुम्हें पा कर लगता है
सब तुम्हारी तरह
कोमल है
माधुर्य है
तुम हो तो !!!
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-राजकपूर राजपूत
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