मैं सच कह देता - मेरे गीत- कविता

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(एक)

मैं सच कह देता
लेकिन तुम बुरा मान जाते
तुम्हें सच सुनने की आदत नहीं

(दो)

जब मनोरंजन ही था
ये फिल्मी दुनिया
तो कब से 
इतना तामझाम करने लगा
सबकी अज्ञानता को समझकर
अपना एजेंडा साधने लगा
हम बने रहे बेवकूफ
वो तब से ज्ञान बांटने लगा
किसी एजेंडे के तहत तलवा चाटने लगा
पैसों के खातिर
जो खुद नहीं अपनाते किसी भावनाओं को
जिस्म दिखाकर सिर्फ पैसा कमाने को
भाती है विलासित की जिंदगी जिसे
वो ज्ञान दे रहा है दुनिया को  !!!

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मैं सच कह देता 
यदि तुम सुन पाते 
स्वाद को तुने प्राथमिकता दी 
मुझे कहां चुन पाते 
अभी जीवन चलेगा डरते हुए 
जब तक तुम सच देख न पाते 
मान्यता मिली है तुम्हें खुद की 
यूं न तुम नजरअंदाज न कर पाते !!!!

पैसों की कीमत 
तुम्हें दुनिया के लिए होगी 
खुद के लिए तो सुकून ही चाहिए  !!!!

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