विश्वास और सत्य के पक्षधर faith-and-truth-article

 अज्ञानता विश्वास के सहारे ज़िंदा रहता है ।faith-and-truth-article-in-hindi ज्ञान प्रत्यक्ष, प्रमाण और सत्य के । हालांकि अज्ञानता कमजोर पक्ष को उजागर करता है । फिर भी लोग अपनी इसी अज्ञानता में खुशी ढूंढते हैं । समान्य लोगों के लिए यही नजरिया व्यवस्थित जीवन प्रदान करते हैं । जिसके इर्द-गिर्द संतुष्टि के भाव उत्पन्न होते हैं । जबकि सत्य की तलाश में रहने वाले खिन्नता में । सत्य की प्राप्ति केवल कुछ लोग ही कर पाते हैं । जबकि विश्वास को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं । जहां हमारी समझ खत्म हो जाती है । वहीं विश्वास का सहारा मिल जाता है । संतुष्टि के साथ । जबकि सत्य की तलाश करने वाले निरंतर प्रयास करते रहते हैं । कौन अच्छा कौन बुरा कहना है ? ज्यादा कठिन नहीं है । निःसंदेह सत्य है ।

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विश्वास और सत्य के संघर्ष या गतिरोध ईश्वर के संबंध में ज्यादा देखा जाता है । 

जबकि अभी तक किसी विज्ञान ने उस ईश्वर के अस्तित्व को नकारा नहीं है । प्रकृति से छेड़छाड़ तो कर सकते हैं लेकिन आत्मा पर विजय नहीं । जिस दिन ईश्वर की प्राप्ति हो भी जाएगी तब भी आदमी को मारना पड़ेगा वर्ना इस संसार की गतिशीलता ख़त्म हो जाएगी ।सृष्टि अनायास ही उत्पन्न हुई है तो अनायास ही खत्म हो जाएगी । मैं सोचता हूँ कि उस ईश्वर की प्राप्ति किसी विज्ञान से न हो । क्योंकि इंसान खुद को निष्पक्ष रखने के लायक नहीं है । इसको संभालने के लिए उस ईश्वर जैसा ही तटस्थ होना पड़ेगा ।जो बहुत मुश्किल काम है । वर्ना जितने भी अविष्कार हुए हैं । सबके भले के लिए है लेकिन ज्यादातर लोग गलत उपयोग करते हैं ।

कहने का मतलब है कि विश्वास पे जीने वाले यदि किसी की क्षति नहीं करती है तब तक सत्य के पक्षधर को चाहिए कि वह उसे तोड़ने का प्रयास न करें । क्योंकि उसने खुद ही सत्य की प्राप्ति नहीं की है । जिसे स्थापित किया जा सके ।  ज्यादातर यह देखा गया है कि सत्य के समर्थक विश्वास पे जीने वालों को तोड़-मरोड़ देते हैं । अपने तर्कों से । जिसे खुद ही जीना नहीं आता है । क्योंकि सत्य की प्राप्ति इतना आसान नहीं है । जितने फर्जी विद्वान बनने वाले हैं। विद्वान हैं कहकर अपनी उच्छृंखलता का ही प्रदर्शन करते हैं । सुविधा की मानसिकता को विद्वत्ता के रूप में परिलक्षित करते हैं । विश्वासी लोगों की खिल्ली उड़ाते हैं । बिना दिशा के । किसी मुर्ख की तरह । जीने के लिए प्रेरित करते हैं । चंद पैसों के लिए गिर भी जाते हैं । सस्ती लोकप्रियता के लिए विवाद करते हैं । ऐसे लोग ढोंगी है जो फर्जी विद्वान बन के बैठें हैं । 

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