कुछ भी तब अच्छा नहीं लगता poetry-love-in-hindi

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 कुछ भी तब अच्छा नहीं लगता 

जब तुम छोड़ के

चले जाते हो साथ मेरा

और तन्हाई की गलियों में 

अकेला छोड़ देते हो तुम मुझे 

झटके हाथ मेरा

उदासियां छा जाती है सीने में

मज़ा नहीं आता है फिर जीने में

और मैं चला जाता हूॅं 

गहरे अवसाद में

उस वक्त मुझे 

दुनिया की बातें अच्छी नहीं लगती

मैं खोया रहता हूॅं

तेरे ख्यालों में

टूटी-फूटी नींद में

तेरा ख्वाब सजाता हूॅं

इस तरह सुकून पाता हूॅं

तेरी यादों में !!!!!

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कुछ भी अच्छा नहीं लगता है

मेरी दुनिया बसी थी

तुम्हारे इर्द-गिर्द

जहां पूर्णता का अहसास था

हर पल खास था

लेकिन तुम निकाल चुके

अपनी दुनिया से

बाकी दुनिया में अब बचा है क्या

मेरी दुनिया

तुम ही बताओ !!!

कुछ भी अच्छा नहीं लगता

जब तुम समझ नहीं पाते हो

दिल की बात

मेरा अहसास

तब लगता है दुनिया को

प्रेम की जरूरत नहीं

इसलिए महसूस नहीं !!!


बड़ी बातों से डर लगता है

कह दूं तो और डर लगता है

कब तक क़ायम रखूंगा अपनी बातें

लोगों की चाल से डर लगता है

कब साथ देंगे, कब छोड़ देंगे

सियासी रंग देखकर डर लगता है

मतलब में जीने वाले यकीन दिलाते हैं

गुप्त इरादों से डर लगता है !!!

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सबको खुश किया नहीं जाता 


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