साहित्य रचनाएं दो तरह की होती है ।literature-life-on-article-in-hindi कोई भावनात्मक पहलू को उजागर करता है तो कोई बौद्धिक क्षमताओं को उजागर करता है । जहॉं भावनात्मक रचनाएं हृदय को छूती है वहीं बौद्धिक रचनाएं मानसिक स्पर्श करती है । दोनों का उद्देश्य मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना है । दोनों ही साहित्य खुद के भीतर उपस्थित संवेदनशीलता से प्रेरित होते हैं । जिसकी अहमियत रचनाकार खुद देते हैं । अपने जीवन में । जिसकी मात्रा साहित्य में दिखते हैं । उसी भावनाओं की प्रबलता होती है । उसके भीतर । यही दृष्टि बौद्धिक रचनाओं में होती है ।
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लेकिन ध्यान रखा जाता है कि उसकी भावनाएं और बौद्धिक गुणों को समाज की दृष्टि में कितना अहम है । इसलिए रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति करने से पहले इस बात का ध्यान रखते हैं । उसका असर पढ़ने वालों पर क्या होगा ? उसकी अनुभूति जिससे मिलती है । वहीं उसके चाहने वाले होते हैं । यदि न मिले तो उससे दूर ही रहेंगे ।
साहित्यकार की पहली प्राथमिकता है कि उसकी रचनाएं समाज को सही दिशा प्रदान करें । एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक हो ।
ध्यान रहे बेहतर साहित्यकार उसे ही कहा जा सकता है जो अपनी संवेदनाओं को काबू में रख कर सर्वहितकारी रचनाओं का सृजन करें । कई बार ऐसा हो जाता है कि साहित्यकार अपनी ही भावनाओं और सोच को सर्वश्रेष्ठ मानने लगते हैं । जो उसके व्यक्तिगत विचार भी हो सकते हैं । जो पसंद/नापसंद के आधार पर सृजित हो । दिशाहीन ।
आजकल ज्यादातर रचनाकार सियासत से ही प्रेरित होते हैं जो किसी न किसी पार्टी के समर्थन में खड़े हुए मिलते हैं । जिसमें नफ़रत और प्यार की वजह से सत्यता नहीं के बराबर दिखाई देती है । आलोचना किसी सुधार भावनाओं के कारण न होकर नफरती होती है ।
ऐसे साहित्यकारों को पहचान भी कठिन है । आजकल के जमाने में । इसलिए शुद्ध साहित्य मिलना अब बहुत दुष्कर कार्य है । जैसे कि पहले के साहित्य रचनाओं में होती थी ।
दुर्भाग्य ऐसे लोगों का समर्थक ज्यादा है । क्योंकि पाठक ही सियासत से प्रेरित है । पाठक जिस ओर अधिक मिलते हैं । साहित्य का सृजन उसी ओर की जाती है ।
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