जीवन उपस्थिति है । Jivan-par-vichar. किसी जीव का । जिसमें क्रियाशीलता होती है । किसी कार्यो का संपादन के लिए । प्रकृति के नियमों में बंधा हुआ । जन्म और मृत्यु तक की ,, एक सफर है । जीवन ।
जिसका संबंध अहसास से है । जितना जो खुद को महसूस करेगा । उतना ही स्वयं की उपस्थिति देने में सक्षम होते हैं । अपना मान सम्मान, स्वाभिमान के प्रति सजगता ही सामने वाले को हमारा अस्तित्व की पहचान दिलाते हैं ।
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यदि हम अच्छे हैं तो जरुरी है हमारे कर्म अच्छे होंगे । यदि कर्म और वचन में एकरूपता नहीं है तो लोग झूठे आदमी के रूप में पहचान करेंगे । यदि संतुलित है तो बेहतर ।
हमारे विचारों का निर्धारण हमारी चाहत और झुकाव पर निर्भर करता है । यदि हम चाहते कुछ और है कर्म करते कुछ और है तो कुछ दिनों के बाद हमारे कर्म के प्रति रुचि खत्म हो जाएगी । हम उसमें जीवन का मजा नहीं ले पाएंगे । बेहतर होगा हमारी चाहत अनुसार कर्म करें । जरुरी नहीं है कि जो शब्द हम दुनिया के सामने रखते हैं । हमारे विचार हो । चालाकियों से ढंक देते हैं । ऐसे लोग अक्सर दोगले किस्म के होते हैं । जिसे अपना मतलब होता है ।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं इस दुनिया में जो मन, वचन और कर्म को संतुलित करके जीते हैं । जो इस संसार के श्रेष्ठ इंसान होते हैं ।
उपरोक्त उपस्थिति अनुसार इंसान अपना अभिनय करते हैं ।
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