आंदोलन जीवी poetry movement

poetry movement

 सुविधा की मांग में

उठती कुछ आवाजें

ऐसा प्रतीत होता है

मानों कोई क्रांति का

बिगुल बजा है

जोर शोर से आवाजें

चीख-चीखकर

उठती है

poetry movement

जिसे सुनकर

कभी-कभी लगने लगता है

कोई बुद्धिजीवी

समाज की बुराई के विरुद्ध

अपनी लड़ाई तेज़ की है

लेकिन नहीं ,,,

हर आवाज की मांग

ज़रूरी नहीं है -

सही हो

सबके हित में

कही हो

केवल कर्णप्रिय मांग

समान विचारधारा के लिए है

बाकी के लिए

कर्कश है 

जिसके बीच से

मधुरता निकलने की उम्मीद कम है

आज के जमाने में !!!

---राजकपूर राजपूत''राज''



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