आवश्यकताओं से बदलते नजरिए

on article requirements प्राथमिक आवश्यकताओं से जब इंसान उठ जाता है । और पूर्ति के लिए कई विकल्प मिल जाते हैं । वही इंसान अपने पडोसी को महत्व देना कम कर देते हैं । नजरिया बदल देते हैं । ऐंठते हैं । उसकी जरूरत बिना वो रह सकते हैं । 

इसी तरह जब एक दूसरे के पास बैठने का अवसर नहीं मिलते हैं । मनोरंजन का साधन अकेले में भी मिल जाते हैं । विचारों का निर्माण मनमाफिक कर जाते हैं । जिसमें सुविधा है वही अपनाते हैं ।  जिससे समय आसानी से बीत जाता है । ऐसे में होता कुछ नहीं । बस एक दूसरे को समझने का अवसर कम हो जाता है । और इंसान जुड़ नहीं पाता है । किसी के दर्द,, अपनापन से । वहाँ संवेदनशीलता का अभाव होता है ।

on article requirements 

इस जमाने में लोग जो भी करते हैं जानबूझकर करते हैं । तनाव कोई लेना नहीं चाहता है । अच्छी बात है । दुर्भाग्य से इसे सभी अपनाते हैं । इसलिए उदासीन हो जाते हैं । एक दूसरे से । 
हर कर्म का कारण होता है ।हर काल का चलन होता है । अपने नजरिए,, अपना तर्क होता है। 
इसलिए ज्यादा कमी नही दुनिया में,,बस जीने का अंदाज़ अपना होता है । चाहे अच्छा हो या बुरा हो मायने नहीं रखता है । जीना है । अपनी सुविधा और सहुलियत में । अपने इसी अंदाज में,, समझ गलत रखते हैं लोग । जिससे दुनिया थकी हुई है । 

विकल्प

जिसके पास बहुत है
उसे चुनाव में सरलता बहुत है
संघर्ष का मार्ग
खुला है
सुविधा अनुसार सुविधाएं बहुत है !!!

विकल्प का होना
तुम्हें कमजोर बना सकता है
उसका चुनाव का स्तर
तुम्हें मजबूत
तुमने कितने सरलता और कठोरता से
चुना है
इस बात पर निर्भर है !!!!

विकल्प न मिलना
बेबसों का नाम है
और विकल्प न ढूंढ पाना
जीवन को खत्म करना
मजबूरी का जिंदगी है !!!!


Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ