धर्म का मर्म Religion The Essence of the poem

Religion The Essence of the poem 


 धर्म का मर्म

तर्को से प्राप्ति नहीं होती

तर्को में

प्रमाणिकता देनी पड़ती है

जिसे बाह्य रूप में

प्रदर्शित करना पड़ता है

साक्ष्य के रूप में

जबकि धर्म

आंतरिक अनुभूति है

जिसे महसूस की जाती है

अपने भीतर

चलकर या अपनाकर

बाह्य जगत से

विपरित

सुकून को

जिसमें ठहरना पड़ता है

स्थिर होकर

स्वयं के करीब

जिसे समझाया नहीं जा सकता है

किसी को !!!

Religion The Essence of the poem

मैं उस धर्म में रहना चाहता हूं 

जो मुझे वास्तविक चिंतन की ओर ले जाएं 

विश्व कल्याण की प्रार्थनाएं हो 

मेरे अस्तित्व की पहचान कराएं 

मुझे लें जाएं 

उस ओर 

मेरा धर्म ही 

मेरा मर्म है !!!!

मैं उस विचार को विचार नहीं कहता 

जो केवल आलोचना करें 

केवल तर्क करें 

और करें तो सरल व्यक्ति से 

धर्म से 

आतंकवादियों से डर जाता है 

---राजकपूर राजपूत

धर्म/का/मर्म


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