Birha ki rate Kavita
बिरहा की रातें
यूॅं ही तरसाते हैं
तेरी यादों में
हमें रातभर जगाते हैं
कभी करवटें बदलते हैं
कभी ख़्वाब बुनते हैं
तेरे ख्यालों में
रातभर तड़पाते हैं
बिरहा की रातें
मेरा ख्याल ही मेरी दुनिया है
जहां नहीं मुझे कमियां हैं
तड़प - तड़प रात गुजारी
रोती रात भर तड़पती रतिया हैं
यूं ही बीत जाती है
ख्यालों में मोहब्बत की बातें
बिरहा की रातें !!!
Birha ki rate Kavita
तुम तपे नहीं आग से
सोना कैसे बन पाओगे
तुम जले नहीं पतंगों सा
तो प्रेम कहां समझ पाओगे
तुम बहे नहीं नदी सा
विश्राम कहां पाओगे
तर्क देते हो ऊजुल-फिजूल
अनुभूति कहां से पाओगे
हित साधने को तैयार बैठे
रिश्तों को गहराई कहां दें पाओगे !!!
तुम्हें तपना था
धरातल पे
चलना था
अकेले
लेकिन तुमने
भीड़ देखी
और शामिल हो गए
इसलिए
तुमने खुद की गहराई नहीं समझीं !!!
प्रेम पथिक वहीं रोया
जहां खुद को अकेला पाया
उम्मीद उसकी जिंदा थी
मगर किसी से ले न पाया
दिया जितना था उसके पास
लिया जितना लेना था लोगों ने
जब मांगा गया वापस प्रेम कुछ
उसके पास प्रेम नहीं
बेगैरत के भाव था !!!!
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-राजकपूर राजपूत
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