तिलांजलि देकर जज़्बातों का
दिल को मार के दिमाग को काम दिए हो ना
अपने अरमानों का
दो जून रोटी की तलाश में जिनका वक्त गुजरता है
उन्हें खबर कहॉं है तुम्हारे नजरियों का
बेशक खुद को तुम विद्वान समझो
वक्त आने पर पर्दा उठ जाते हैं
तुम जैसे समझदारों का
न कोई वसूल न कोई नजरिया जिंदगी की
तेरे पास खुद जवाब नहीं है कई सवालों का
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