मैं लड़ नहीं पाया I could not Fight Poem

I could not Fight Poem 
मैं लड़ नहीं पाया
मैं कह नहीं पाया
उसने सुनी नहीं बात
मैं समझा नहीं पाया
आरोप सभी पूराने थे
उसे मुझपे लगाने थे
बचना था उसे अभी
घुमावदार था लफ़्ज़ सभी
जिसे मैं समझा नहीं पाया
मैं कह नहीं पाया
अगर सुनते बातें मेरी
जिसमें गलतियॉं नहीं थी मेरी
न जाने कैसी थी चालाकियॉं तेरी
सवाल मेरा ही था
जिसका जवाब दे नहीं पाया
और मैं कह नहीं पाया
मैं लड़ नहीं पाया !!!

I could not Fight Poem


मैं कह नहीं पाया 
उसे समझ नहीं पाया 
ऐसा विद्वान था 
नज़रिया समझ न पाया 
दोहरे मापदंडों से सजाया था खुद को 
बताया कुछ दिखाया कुछ 
समझ न पाया 
भीड़ के हिसाब से बदल गए नजरिए 
खुद को समझ न पाया 
ऐसा भी क्या था उसमें 
वो चार शादियों के बावजूद लिखते थे शायरी 
उसके प्रेम समझ न पाया 
गला रेता अपनी अहमियत के लिए 
उसके खुदा को समझ न पाया !!!!
 

---राजकपूर राजपूत''राज''

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ