चाहा मगर तुने समझा नहीं

तुमसे कोई उम्मीद नहीं
चाहा मगर तुने समझा नहीं

जीना चाहा तेरे साथ मगर
तुने मेरा हाथ थामा नहीं

हमसफ़र हो तो साथ चलते
एक पल कभी साथ चला नहीं

वादे किए वो दिल का बहलाना था
चोट लगी मुझे तुने देखा नहीं

तरसती रही मेरी ऑंखें तेरे लिए
मेरी ऑंखों को कभी पढ़ा नहीं

अब उम्मीद करें तो करें कैसे
जिसे चाहा उसने समझा नहीं
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