My Presence Poem
मेरी उपस्थिति ही मेरा अस्तित्व है
मेरे जाने के बाद लोग क्या कहेंगे
क्या पता ???
मेरे भीतर की ऊर्जा जब तक है
मेरी जान तब तक है
मेरे जाने के बाद लोग ढूंढेंगे
और उसके ढूँढ़ने पर मिल जाऊंगा
क्या पता ???
जिंदगी भर जिसे शिकायत थी मुझसे
वो आकर आंसू बहाएंगे
मेरे आख़री सफ़र में
कितना पछतावा है
या फिर डर है
सबको छोड़ के ऐसे ही जाना है
क्या पता ???
सत्तर अस्सी साल के बाद
उपस्थिति सीमित हो जाती है
घर के कमरों तक
चंद रिश्तों तक
सिमटते रिश्तों से
सिमटते बदन तक
झुक जाता है
मृत्यु की ओर
अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए !!!!
My Presence Poem
तेरी जब भी आती है
तुम हू-ब-हू
उपस्थित हो जाती हों
और सुनने लगती हो
मेरी बातें
निरंतर
मेरी संतुष्टि तक !!!!
मेरी उपस्थिति का तुम्हें भान न हुआ
जैसे तू मुझसे अनजान हुआ
मैं समझता था तुम्हें कभी अपना
क्या तेरे सीने में कभी अपनापन न हुआ !!!
अपनी उपस्थिति दर्ज कराओं
जैसे किसी रजिस्टर में
हस्ताक्षर होता है
अंगुठे का !!!!
इन्हें भी पढ़ें 👉 मैं और तुम
0 टिप्पणियाँ