Siyasat aur charitra Kavita Hindi,
सियासत जब
बस्ती में घुस जाती है
हर घर टूट जाते हैं
उम्मीद उनसे क्या ?
जो अपना हित चाहते हैं
सच को झूठ
और झूठ को सच कर जाते हैं
अफवाहें इस तरह
बताएं किस तरह
बात रखें इस तरह
सारे रिश्ते टूट जाते हैं
मुद्दा ना कोई है
अपना ना कोई है
न्याय ना कोई है
आस बस सोई है
गरीबों के अरमान लूट जाते हैं
यकीं दिलाना कुछ और है
दिल के इरादे कुछ और है
बेशक बहस तेरे ख्याल का
लेकिन ये अक्लमंदी कुछ और है
जिस दिन जाओगे
विश्वास टूट जाते हैं
सियासत जब
बस्ती में घुस जाते हैं !!
सियासत का एक चेहरा बेकार लगता है
गिरा आदमी का सम्मान लगता है
जिसमें सम्मान नहीं मगर निर्लज्ज है
सियासत का चरित्र कहां लगता है !!!
---राजकपूर राजपूत''
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1 टिप्पणियाँ
Bahut hi sundar rachana
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