केवल मतलब के हो जाते हैं Jo kah nahin pàaten hain

Jo kah nahin pàaten hain

जो कह नहीं पाते हैं
दिल की बातों को
अपने जज्बातों को
जी भर के रो जाते हैं
जो लड़ नहीं पाते हैं
वो सिसकियां भर के 
अब सो जाते हैं
जब सुना ना जाए
दर्द किसी का
वो आहें भर के खो जाते हैं
जब सियासत हो दिल में
उससे उम्मीद ही क्या
न्याय में ढूंढ़े अपने पराए 
वो बुद्धिजीवी ही क्या
जो केवल मतलब के हो जाते हैं !!!

Jo kah nahin pàaten hain


उसके तर्क भौतिकता है
फायदा लेना नैतिकता है
उससे उम्मीद ही क्या चरित्र की
प्राप्ति में फूहड़ता है !!!

जो कह नहीं पाते हैं
उसे सुनना पड़ता है
लोगों की
और धीरे-धीरे बदल जाते हैं
बोलने वालों के अनुसार 
स्वयं की सोच खत्म हो जाती है
स्वयं के अनुसार !!!


---राजकपूर राजपूत''राज''

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