किताबी ज्ञान और प्रेम
केवल किताबों के
पन्ने पलट देने से
पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती है
जबकि ढाई अक्षर प्रेम को
समझने में सारी उम्र गुजर जाती है
मगर लोग प्रेम को
समझ नहीं पाते हैं
और दावा करने लगते हैं कि
वह सबकुछ जान गए हैं
जबकि जाने कुछ भी नहीं है
ये उसका ज्ञान ही
अज्ञानता है !!!
-राजकपूर राजपूत
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