इश्क में Poem Erased in Love

Poem Erased in Love 
इश्क में जीने वाले भूलते नहीं है
अपना प्यार
नफरती नहीं भूलते
अपनी नफ़रत
बस तुम्हें पहचानना है
कौन प्यार कौन गद्दार ???

औरौ को देख के मैंने सोचा है
इश्क से पहले मैंने कब हंसा है
तेरी चाहत इस कदर छाया है
हर पल इश्क में दर्द ही पाया है !!!

Poem Erased in Love


मैं तेरी नफ़रत में अपना प्रेम भूला देता
मगर क्या करूं मेरा प्रेम ही वजूद है
इसे मैं कैसे मिटा देता

तुम हंस कर सितम ढाते हो 
अपना गुनाह सियासत से छुपा लेते हो
ये तरकीब तुम्हारी खानदानी पेशा है
गलत बात को भी सही साबित कर लेते हो 
मैं चाहता तो तुझे जवाब दें देता
यदि मैं अपने अंदर का इंसान मिटा देता
मगर मैं क्या करूं मेरा प्रेम ही वजूद है
इसे मैं कैसे मिटा देता !!!!
 
तुम्हारे तर्क में फर्क है
धर्म का, इंसान का
कितने ज्ञानी हो जाते हो अपनों के लिए
कितने नफरती बन जाते हो
दूसरों के लिए
तुम्हें तो मतलब है अपनी बिरादरी का
उसके स्वार्थ का
मतलब का
तुम्हें अभी जीना कहां आया है
आतंक की तरह
विचार आया है
न सुनना न चाहना
तुम जब भी आए
अंधों की तरह आया है
अभी तुम्हें जीना कहां आया है !!!

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