ख्वाब Poem of a Droken Man

Poem of a Droken Man 
दिन भर का थका हुआ आदमी
रातों में ख्वाब बुनता है
करते हैं गुफ्तगू ना जाने कितने
जिसे वो ध्यान से सुनता है
सुकून मिलता है बहुत प्रिये
जागी ऑ॑खें तो ख्वाब टूटता है !!!

महसूस होता गया 
प्रेम खोता गया 
जिसे देख दिल धड़कता था 
मुझे देख हंसता गया 
प्रेम था ही नहीं 
मेरा दिल ही बहकता गया 
उसे दूर क्या हुए 
प्रेम खोता गया !!!!

Poem of a Droken Man


मेरा अत्यधिक प्रेम 
उसके लिए 
उबाऊ था 
अपनी चाहत पे 
उसका ख्याल किया 
जिसकी चाहत उसे नहीं थी !!!!

जितना चाहा 
उतने दूर हुए 
मगर हम उसकी चाहत पे 
मजबूर हुए 
उसने समय बिताया हमारे साथ 
हम चाहत में थे 
प्यार करके दूर हुए !!!!

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