दूरियां रह जाती है

मैं क्षितिज की ओर 
जब भी निहारता हूॅ॑
धरती और आसमान का
मिलन देखता हूॅ॑
मेरी आशाएं जाग उठती है
तुझसे मिलने के लिए
हृदय में हुक उठ जाती है
एक रौशनी कौंध जाती है
मेरे अतस के भीतर

तरसते रह जाता हूॅ॑
और मैं तड़प जाता हूॅ॑
कुछ ही क्षण में
मिथ्या भ्रम टूट जाता है
संशय भर जाता है
कुछ मजबूरियां रह जाती है
धरती और आसमान के बीच
दूरियां रह जाती है
मिलन की आस
अधुरी रह जाती है
---राजकपूर राजपूत''राज''





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