ऊंट की चोरी निहरे -निहरे

चाहे कोई कितना भी 
निष्पक्ष खुद को माने,, 
दिल से पसंद,,,, 
खुद की सोच,, 
रूचि,, दिल्लगी,, 
जिससे मिलती है,,,
उसी से बनती है । 
आज के जमाने में समझदारी
,, चालाकियों का पर्याय बन चुके हैं । 
दिल के इरादे,, 
चुपके-चुपके प्राप्त की जाती है
 ताकि लोगों को ख़बर ना हो । 
वो कहते है ना,,, 
ऊंट की चोरी निहरे-निहरे !!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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