चाहे कोई कितना भी
निष्पक्ष खुद को माने,,
दिल से पसंद,,,,
खुद की सोच,,
रूचि,, दिल्लगी,,
जिससे मिलती है,,,
उसी से बनती है ।
आज के जमाने में समझदारी
,, चालाकियों का पर्याय बन चुके हैं ।
दिल के इरादे,,
चुपके-चुपके प्राप्त की जाती है
ताकि लोगों को ख़बर ना हो ।
वो कहते है ना,,,
ऊंट की चोरी निहरे-निहरे !!!
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