शालनी कुछ पल के लिए सकपका गई । चेहरे का रंग उतर गया । मूंह का कौर मूंह में ही रह गए । कुछ सोच में डूब गई । मानों चोरी पकड़ी गई हो । कुछ बोल ना सकी । बिना कुछ जवाब दिए , चुपचाप खाना खाने लगी ।
"उसे मैंने कभी नहीं देखा । कहां का है ? कोई रिश्तेदार हैं ? "
प्रकाश,दीपक की ओर देखते हुए कहा । जिसे सुन के दीपक भी कुछ ना बोल सके । वह भी कुछ देर के लिए चुप ही रहा । सोच में वह भी डूब गए,, आखिर ये किसे कह रहे हैं । शालनी आखिर क्यों गई थी ?
"अरे ! नहीं प्रकाश , किसी और को देखा होगा । शालनी तो अपनी सहेली के यहां गई थी । क्यों शालनी !! मैंने ही तो उसकी सहेली के यहां छोड़ा था । पक्का धोखा हुआ है तुमको । अगर जाती तो मेरे साथ ही बेमेतरा चली जाती । घुमने के लिए । "
"हां , हो सकता है । गलती हो गई, शायद! ! देखने,, पहचानने में ।"
प्रकाश गलती तो मान रहा था लेकिन चेहरे के भाव देख के लग रहा था कि वह सच ही कह रहा है । यदि शालनी गई भी थी तो इसमेंं कोई बड़ी बात ही क्या है ! गई थी,, मतलब गई थी ।
"क्या अकेली थी । " कल्याणी ने कहा ।
"नहीं,, एक लड़की और थी । जो बीच मेंं बैठी थी । वो मुझे कुछ,,, खैर छोड़ो ! मुझे धोखा हुआ है । "प्रकाश ने कहा ।
कल्याणी का इस तरह से पूछना दीपक को अच्छा नहीं लग रहा था । कल्याणी को गुस्से भरी नज़रों से देख रहा था । जैसी उसकी बहन ने कोई गलती की हो । जिसे वो जांच पड़ताल कर रही है ।
" चांवल, सब्जी और ले लो """दीपक ने प्रकाश से शालनी वाली बातों से ध्यान हटाते हुए कहा । जबकि प्रकाश की थाली में सब-कुछ था । उसे भी कहीं ना कहीं बुरा लग रहा था ।
"अरे ! नहीं, आज तो बहुत हो गया । भाभी ,आप कभी बैठने हमारे घर आना । सुमित्रा (उसकी पत्नी) बहुत अच्छी है । पक्का कहता हूं । आपकी और सुमित्रा की खुब जमेगी । "
" समय नहीं मिलता है, प्रकाश भाई । कभी देखूंगी ।"
" आदमियों को कभी भी फुर्सत नहीं मिलते । समय निकालना पड़ता है अपनों के लिए । "
कल्याणी चुप हो गई । प्रकाश और दीपक बातें करते रहे । कुछ देर बाद प्रकाश अपने घर चला गया । दीपक भी अपने कमरे में चला गया । उसके चेहरे पे अजीब-सी खिचावट थी । किसी सोच में डूबा हुआ था ।
कल्याणी जब बर्तन मांज कर आई तो नाराज था । एक नजर देखा और करवट बदल कर सो गया ।
"क्या हुआ ? कुछ परेशानी है" ।
"अब क्या बताऊं तुम्हे ! तुम तो घर की इज्ज़त को बाहर नीलाम करने में तुली हो ! बड़े मजे से तहकीकात कर रही थी । "
कल्याणी को ऐसा लगा मानो उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है । उसने ऐसा क्या किया है जिसके कारण वो उसे इतना सुना रहा है ।
"मैंने क्या किया" ?
"क्या किया,, तुम तो ऐसे पूछ रही थी मानो मेरी बहन बिगड़ चुकी है । लड़कों को लेकर घूमती है । यही कहना चाहती थी ना तुम ! बदला ले रही थी, ना जाने किस बात की ।"
"ये आपकी सोच है । मैंने ऐसी कोई बात नहीं कहीं जिससे किसी को बुरा लगे । मैं तो केवल अपनी संतुष्टि के लिए पूछी थी । हो सकता है कि उसकी सहेली के यहां कुछ काम आ गया हो,, जिसके कारण शालनी को भी साथ ले के गए थे । इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत ही क्या है ! जिसपे भरोसा नहीं उसकी हर बात बूरी लगती है ।"कल्याणी नाराजगी जताते हुए कही ।
"फिर भी पराए लोगों से इस तरह पूछना कहां तक सही है ! "
"प्रकाश कहां पराए हैं । पहले तो खुब बनते थे । "
"लेकिन प्रकाश की बातें तो गलत इशारे कर रहे थे । उसकी सोच ही खराब है । किसी की घर के बारे में आसानी से कह देते हैं । "
"उसने सहज ही पूछा था । शालनी के चुप रहने से उसकी बातों का अर्थ बदल गए । "
"तुम प्रकाश की बातों को इतना महत्व क्यों दे रही हो ? मुझे यही बात समझ नहीं आ रहा है । और आज के जमाने में सबको अपनी जिंदगी जीने का हक है । थोड़ी सी आजादी ले ली तो क्या हो गया । खुद एक लड़की होकर ऐसी सोचती हो । "दीपक, कल्याणी को कोसते हुए कहा ।
"आप कुछ सच्चाई से मुंह फेरने की कोशिश कर रहे हैं । बात किसी की आजादी से नहीं है । शालनी अभी पढ़ाई लिखाई कर रही है । ऐसे में ज्यादा आजादी भी तो ठीक नहीं है । उसके पढ़ाई-लिखाई में असर पड़ेगा ।
और हां ,समाज में जिसका वर्चस्व है उसका ही चलता है । आज़ भी समाज पुरुष प्रधान है । लड़कियों को ही गलत नजरों से देखते हैं । सारी नैतिक जिम्मेदारी लड़कियों पर डाली जाती है । भोग की वस्तु समझी जाती है । जहां लड़कों के लिए पुरूषार्थ की बात है वहीं लड़कियों के लिए इज्जत की । लड़कियों को फंसाकर पुरूष महान बन जाते हैं । और एक लड़की अपेक्षित समाज की नज़रों में । मुझे दुःख होता है, लड़कियों के शोषण होते देख के । "कल्याणी की बातों को सुनकर दीपक और गुस्से में आकर कहा-
"क्या तुम भी अपने समय मेंं बहुत मौज-मस्ती किए हो । इसीलिए तो इतना भाषण झाड़ रही हो । "
- क्रमशः
---राजकपूर राजपूत''राज''
1 टिप्पणियाँ
बढिय़ा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं